" इतिहास का महत्व "
जिस समाज का अपना कोई इतिहास नही होता, वः समाज कभी शाशक नही
बन पाता , क्योकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है ,प्रेरणा से जाग्रति आती है , जाग्रति से सोच बनती है , सोच
से ताकत , ताकत से शक्ति , एवम " शक्ति शंघे कलियुगे " ..
भृगुवंशी "डाकोत जाति " के कालांतर के इतिहास पर गोर किया जाए तो इसे गौरवमय
इतिहास की संज्ञा दी जा सकती है ,जिसमे महाऋषि भरगु से शुरू होकर , महृषि डामराचार्य ( डंक ऋषि - डंक नाथ , डंक मुनि } पर आकर नजर रुक जाती है , अर्थात महऋषि भृगु जी वट व्रक्ष के रूप में प्रचलित होकर , शुक्राचार्य जी के वंश में महऋषि [डंक ,डामराचार्य जी ] जैसे समस्त ऋषियों का काफी योगदान रहा , इस
गौरवमयी इतिहास के विषय में " डाकोत जाति " के सभी छोटे -बड़ो को इतिहास का ज्ञान , पूर्वजो के
बारे में जानकारी होना जरूरी है की किस तरह हमारे ऋषि मुनियो ने " भृगुवंश की शुक्राचार्य जी की पीढ़ी
को इतिहास में क्या स्थान दिलाया , और सभी पूर्वज इतिहास के पन्नो पर अपना नाम स्वर्ण अक्षरो में
लिखाने का गौरव प्राप्त किया।
सबसे पहले महऋषि शुक्राचार्य जी के विषय में कुछ पाठको को स्मरण करते हुए आगे बढ़ते है। शुक्राचार्य जी दैत्यों के गुरु एवम देवो के देव महादेव के भक्त कहे जाते है , जिन्होंने शिव भग्ति करके
संजीवनी विद्या प्राप्त की , जिसे आज तक कोई भी ऋषि - महात्मा हाशिल नही कर पाए , इतना ही नही
उन्होंने आकाश में भी शुक्र तारे के रूप में अपना स्थान पाया , और जब तक शुक्र तारा अस्त रहता है , कोई
भी शुभ कार्य नही किया जा सकता। इसी वंश में शुक्राचार्य के अतिरक्त शुक्राचार्य जी के पुत्र षंड एवम मर्क
हुए , जिन्होंने हिरणाकश्यप के पुत्र प्रह्लाद को शिक्षा दीक्षा देकर उस मुकाम पर पहुचाया , जिस प्रह्लाद की
भग्ति से उसके पिता को भी मात खानी पड़ी।
महृषि डंक { डामराचर्य , डंक नाथ , डंक मुनि } का नाम भी शुक्राचार्य वंसज "डाकोत जाति "
से जोड़ कर देखा जाता है , ड़क ऋषि परम् वैरागी पुरुष थे ,इष्ट के सच्चे भगत थे , सुख वैभव ,भोग विलास
से भी दूर रहकर प्रभु भग्ती में लीन रहे और शंकर जी के प्रति अनुरागी रहे। गुजरात में जब वो डाकोर में
तपश्या कर रहे थे , तो श्री कृष्ण स्वयं भीम के साथ उनसे मिलने पहुचे थे , क्योकि ड़क ऋषि कृष्ण जी के
भी सच्चे भगत थे। इस प्रकार देखा जाए तो इस जाति का इतिहास काफी गौरव शाली एवम महत्वपूर्ण
माना जाता है। थोड़ी और नजर दौड़ाई जाए तो इसी वंश में "सुषैन वैद " का नाम कौन नही जानता ,
राम रावण युद्ध में जब राम के भाई लक्छ्मण जी मूर्छित हो गए थे , उस समय सुषैन वैद ने उनका उपचार किया और लक्छ्मण जी को जीवन दान देकर श्री राम के दिल में जगह बनाई ,जिसका नाम भृगुवंशी इतिहास
में सुनहरी अक्षरो में लिखा गया।
इस जाति के लोग अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते है। तथा समस्त मानव
जाती के दुःख-दर्द में अपने पूर्वजो के बनाये रास्ते पर चलते हुए , समाज हितार्थ ,पूर्ण योगदान देते है।
इन्हें शनि उपासक का दर्जा प्राप्त है , दानदाता की सभी पीड़ा को सहन करते हुए , दान दाता की रक्षा
भी करने में भी इनका योगदान अवश्य पाया जाता है , क्योकि , इनकी जिव्हा पर सरस्वती का वास है।
बी: एस :शर्मा
जिस समाज का अपना कोई इतिहास नही होता, वः समाज कभी शाशक नही
बन पाता , क्योकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है ,प्रेरणा से जाग्रति आती है , जाग्रति से सोच बनती है , सोच
से ताकत , ताकत से शक्ति , एवम " शक्ति शंघे कलियुगे " ..
भृगुवंशी "डाकोत जाति " के कालांतर के इतिहास पर गोर किया जाए तो इसे गौरवमय
इतिहास की संज्ञा दी जा सकती है ,जिसमे महाऋषि भरगु से शुरू होकर , महृषि डामराचार्य ( डंक ऋषि - डंक नाथ , डंक मुनि } पर आकर नजर रुक जाती है , अर्थात महऋषि भृगु जी वट व्रक्ष के रूप में प्रचलित होकर , शुक्राचार्य जी के वंश में महऋषि [डंक ,डामराचार्य जी ] जैसे समस्त ऋषियों का काफी योगदान रहा , इस
गौरवमयी इतिहास के विषय में " डाकोत जाति " के सभी छोटे -बड़ो को इतिहास का ज्ञान , पूर्वजो के
बारे में जानकारी होना जरूरी है की किस तरह हमारे ऋषि मुनियो ने " भृगुवंश की शुक्राचार्य जी की पीढ़ी
को इतिहास में क्या स्थान दिलाया , और सभी पूर्वज इतिहास के पन्नो पर अपना नाम स्वर्ण अक्षरो में
लिखाने का गौरव प्राप्त किया।
सबसे पहले महऋषि शुक्राचार्य जी के विषय में कुछ पाठको को स्मरण करते हुए आगे बढ़ते है। शुक्राचार्य जी दैत्यों के गुरु एवम देवो के देव महादेव के भक्त कहे जाते है , जिन्होंने शिव भग्ति करके
संजीवनी विद्या प्राप्त की , जिसे आज तक कोई भी ऋषि - महात्मा हाशिल नही कर पाए , इतना ही नही
उन्होंने आकाश में भी शुक्र तारे के रूप में अपना स्थान पाया , और जब तक शुक्र तारा अस्त रहता है , कोई
भी शुभ कार्य नही किया जा सकता। इसी वंश में शुक्राचार्य के अतिरक्त शुक्राचार्य जी के पुत्र षंड एवम मर्क
हुए , जिन्होंने हिरणाकश्यप के पुत्र प्रह्लाद को शिक्षा दीक्षा देकर उस मुकाम पर पहुचाया , जिस प्रह्लाद की
भग्ति से उसके पिता को भी मात खानी पड़ी।
महृषि डंक { डामराचर्य , डंक नाथ , डंक मुनि } का नाम भी शुक्राचार्य वंसज "डाकोत जाति "
से जोड़ कर देखा जाता है , ड़क ऋषि परम् वैरागी पुरुष थे ,इष्ट के सच्चे भगत थे , सुख वैभव ,भोग विलास
से भी दूर रहकर प्रभु भग्ती में लीन रहे और शंकर जी के प्रति अनुरागी रहे। गुजरात में जब वो डाकोर में
तपश्या कर रहे थे , तो श्री कृष्ण स्वयं भीम के साथ उनसे मिलने पहुचे थे , क्योकि ड़क ऋषि कृष्ण जी के
भी सच्चे भगत थे। इस प्रकार देखा जाए तो इस जाति का इतिहास काफी गौरव शाली एवम महत्वपूर्ण
माना जाता है। थोड़ी और नजर दौड़ाई जाए तो इसी वंश में "सुषैन वैद " का नाम कौन नही जानता ,
राम रावण युद्ध में जब राम के भाई लक्छ्मण जी मूर्छित हो गए थे , उस समय सुषैन वैद ने उनका उपचार किया और लक्छ्मण जी को जीवन दान देकर श्री राम के दिल में जगह बनाई ,जिसका नाम भृगुवंशी इतिहास
में सुनहरी अक्षरो में लिखा गया।
इस जाति के लोग अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते है। तथा समस्त मानव
जाती के दुःख-दर्द में अपने पूर्वजो के बनाये रास्ते पर चलते हुए , समाज हितार्थ ,पूर्ण योगदान देते है।
इन्हें शनि उपासक का दर्जा प्राप्त है , दानदाता की सभी पीड़ा को सहन करते हुए , दान दाता की रक्षा
भी करने में भी इनका योगदान अवश्य पाया जाता है , क्योकि , इनकी जिव्हा पर सरस्वती का वास है।
बी: एस :शर्मा
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