Saturday, August 22, 2015

ब्राह्मण समुदाय :बनाम : उपजातियां

                                                ब्राह्मण समुदाय  :बनाम : उपजातियां
                                            वक़्त के बदलते परिवेश एवं आपसी उठा -पटक, उच्च  एवं, निम्न ,इसे वक़्त
की विडंबना कहकर ही संतोष कर लेना होगा की आज :" ब्राह्मण समुदाय " न जाने कितनी ही उपजाति के
रूप में उभर कर सामने आ रहा है , जो समस्त ब्राह्मणो के लिए चिंता का विषय  कहा जाये तो कोई अतिस्योक्ति  नही।   वैसे तो समस्त ब्राह्मण वर्ग ( महर्षि भरगु ) जी की संतान है, परन्तु जैसे जैसे ,इनकी
संख्या बढ़ती गई , इनके ( वट - वृक्ष  ) भी बढ़ते गए और सभी ब्राह्मण अलग अलग ऋषियों , महृषीयो  के
नमो से जाना जाने लगा, ठीक उसी प्रकार महाऋषियों की ( जयंतिया ) भी मनाई जाती है , जैसे , महर्षि
परशु राम  जयंती , महर्षि भरगु जयंती  इत्यादि ,इत्यादि।
                                           प्राय : देखा जाता है की कुछ ब्राह्मण वर्ग महर्षि परशु राम जयंती मनाते  है
तो कुछ ब्राह्मण वर्ग महर्षि भरगु जयंती मनाते देखे जा सकते है।  सबका सोचने का तरीका अलग हो सकता
है , परन्तु यह तो मान  कर चलना ही होगा , की सभी ब्राह्मणो के परदादा ( descendent) महर्षि भरगु को
ही  माना जाता है।
                                            महर्षि भरगु जी की दो पत्नियों   का उल्लेख पाया जाता है , (१) दिव्या ,
 (२) पोलुमा , दिव्या पत्नी से महर्षि ( शुक्राचार्य ) एवं पोलुमा से महर्षि च्यवन का जन्म होना बताया
जाता है , तथा दोनों ही पुत्रो का भरगु वंश में  प्रमुख स्थान माना  जाता है. आगे चलकर इनके वट  वृक्ष
अलग अलग हो गए।  महर्षि शुक्राचार्य के चार पुत्र हुए , जिनके नाम  शंड ,त्वष्टा ,वस्त्र  एवं अमरक के
नामो से जाने जाते है, एवं महर्षि च्वयन  के  अप्नवान ,  परमती  एवं दधीचि नाम के  पुत्र विख्यात हुए।
च्वयन के वट  वृक्ष में महर्षि जन्मदग्नि हुए , जिनकी पत्नी रेणुका जी से महर्षि परशुराम का जन्म हुआ
जो जगविख्यात हुए , जिन्होंने छत्रियो को मैदान में 21bar  हराकर  महारथ हासिल की। , शुक्राचार्य जी के
वट  वृक्ष में  जो ऋषि हुए  जैसे  शंड , शंकराचार्य ,शांडिल्य एवं डामराचार्य  जिन्हे डंक मुनि , डंक नाथ के
नामो  से भी जाना जाता है।  महऋषि शुक्राचार्य जिन्होंने देवो के देव महादेव  की तपश्या करके मृत संजीवनी
बूटी ) हासिल की जो जग विख्यात है। उन्ही के वटवृक्ष में वैद (सुषेण ) का नाम आता है , जोकि  रावण के
दरबार में प्रशिद थे , जिन्होंने राम रावण युद्ध में  लक्ष्मण जी को मूर्छित होने पर संजीवनी  बूटी से ही
लक्ष्मण जी को जीवन दान दिया  था। वास्तव में मह्रिषी शुक्राचार्य एवं च्वयन दोनों का ही वट वृक्ष
प्रमुख  माना जाता है ,, एवं दोनों ही भरगु वंसज कहे जाते है।
                                            ब्राह्मणो की वैसे तो अनेक उपजातिया  है , जिनमे से एक उपजाति ,
( डाकोत , जोशी ) उपजाति भी पाई जाती है , जो महर्षि भरगु जयंती मनाते है , तथा कुछ ब्राह्मण
परशुराम जयंती भी मनाते है।  ( डाकोत , जोशी ) जाती का  शुक्राचार्य वंसज एवं महर्षि (डक ) की
संतान बताते है. . उनके परदादा मह्रिषी भरगु कहे जाते है।
                                            देखा जाये तो मह्रिषी शुक्राचार्य जी की उपलब्धि भी कम नही है , परन्तु
उनकी जयंती नही मनाई जाती ,शायद इसलिए की उन्हें आकाश में शुक्र तारे के रूप में प्रमुख स्थान
मिला हुआ है।  वैसे शुक्राचार्य जी के वटवृक्ष में और भी कई ब्राह्मण वर्ग अपने आपको मानते है , जैसे
( विश्वकर्मा) ब्राह्मण  जिन्हे पांचाल भी कहा  जाता है।  भरगु जयंती  का पौराणिक प्रमाण तो अभी
कहि नही मिल पाया ,परन्तु हिन्दू ब्लॉग के अॉथर के अनुसार भरगु जयंती के तारीख वैसाख माह की
तृतीया  शुक्ल पक्ष बताते है , जबकि डाकोत , जोशी ब्राह्मण भरगु जयंती बसंत पंचमी को मनाते है.
मह्रिषी  शुक्राचार्य जिन्होंने घोर तपस्या करके " मृत संजीवनी बूटी  हासिल की ,जिनका जन्म ,शुक्रवार ,
श्रवण सुधा अष्टमी  स्वाति नक्छत्र में होना बताया गया है ,तथा महर्षि शुक्राचार्य जी को ही भार्गव
नाम से जाना जाता है ,  क्यों  न   हम महर्षि शुक्राचार्य जी को भी उनके जन्म दिन पर ,उनकी जयंती मना
कर याद किया जाये।  जिनका नाम " मृत संजीवनी  बूटी  से जुड़ा हुआ  है।
                                                                                      ( B.S.Sharma)      
                                                                                            Delhi

Wednesday, August 19, 2015

भिक्षावृति - दोषपूर्ण - पद्धती

                             
                                                      भिक्षावृति - दोषपूर्ण - पद्धती
                                  भिक्षावृति एक गम्भीर विषय बनकर समाज को चुनौती भरा पैगाम देकर उभर  रहा है।
रोजी -रोटी का मसला एवं आत्मगिलानी से भरपूर दोनों ही  बातें गंभीर विषय है।  दोनों  ही समाज के लिए
चुनौती है। यह तो मान  कर चलना ही होगा की समाज की उन्नति के लिए (Young Generatioin) इसे कभी भी
Accept  करने के लिए तैयार  नही ,( कुछ  Parents मज़बूरी में बच्चो को ऐसा करने के लिए बाध्य करते है ,
ऐसे , इस किस्म के आंकड़े ( खबरे ) भी प्राप्त हुई  है।  यह तो मान  कर चलना ही होगा की यदि भिक्षावृति
समाज से खत्म नही होगी तो आत्मगिलानी भी खत्म नही हो सकती ,इसे श्राप कहो  या अभिशाप  ;
यह मेरा निजी मत है।
                                   वर्तमान में समाज चार वर्गो में विभाजित हो चूका है , जिसके परिणाम कुछ मिलने
चालू हो गए है , बाकि एक दसक के बाद आपको नजर आने लगेंगे। चार वर्ग इस प्रकार है :-
१.  वे लोग जो ( भिक्षावृति  Door to Door ) गाव , गली , चौराहो  पर करते है।
   इस वर्ग के लोगो के बारे में  दो पहलुओ पर विचार करना जरुरी है
(अ )  लोगो की रोजी - रोटी का सवाल  :
(बी)  इस व्यवसाय में दूसरे वर्ग  के लोगो की घुश पैठ  :
२. वे लोग जो स्वयं के मंदिर  या दूसरे लोगो के मंदिरो में  दान ग्रहण कर रहे है ,
३.  वे लोग जो ज्योतिष का कार्य भी करते है , और शनि वार को   दान भी ग्रहण करते है।
४.  वे लोग ( व्यव्शाय - नौकरी )  पेशा  वर्ग ,. :::::
                                  इन  सभी  बातो को मध्य  नजर रखते हुए  समाज के सभी वर्ग के कार्यकर्ताओ,
सभाए , संस्थाए , बुद्धिजीवी  वर्ग  ( व्यवशायीक  एवं सर्विस  पेशा  वर्ग , प्रशासनिक  वर्ग )  भिक्षावृति
वर्ग  सभी को एक मंच पर आकर सभी के विचारो को जानना अति महत्वपूर्ण है, समाजिक मंच पर
शांतिपूर्ण ढंग से , इस पर बहस की जाये , लाभ हानि , आत्मगिलानी  सभी को एक पलड़े में रख कर
टोला जाये , जो भी पलड़ा  भारी  हो , विचार करने के उपरांत  एक  प्रारूप सर्व सम्मति से बनाकर
अखिल भारतीय स्तर पर जारी किया जाये , और उसे अम्ल  में  लाने के प्रयास किये जाये तो बेहतर
 होगा।  कुछ विषय मेरे पास समाज के (  respected Advocates )  ke sath    सलाह, मसबरा ( क़ानूनी
 दाव  पेच  के भी है , ( जो भी समाज के एडवोकेट्स ) अपने आपको ऑफर करेंगे , उनसे भी इस विषय
पर परामर्श किया जायेगा और उनकी मदद भी ली जाएगी।
किसी भी कार्य को अंजाम देने हेतु (Will power )  को मजबूत करना नितांत आवश्यक है।
आपको समय पुकार रहा है , ललकार रहा है  आगे आइये , और बच्चो  के भविष्य के लिए एक मत होकर
समाज सेवा में समर्पित हो जाइये , यही वक्त की आवाज है। .
विशेस बात :-- देखा गया है की बच्चो  के सम्बन्धो की जब चर्चा लोग करते है ,तो भिक्षावृति , शनिदान
का विषय भी उभर कर सामने आ रहा है ,क्योकि  सम्पन लोग ऐसी जगह संबंध बनाते हुए  हिचकिचाहट
महसूस करते है।  ;;;;
            नोट : इस लेख से मेरी भावना किसी को चोट पहुचना या किसी प्रकार की कटाक्ष करने की नही है
                     यदि किसी की भावना आहत होती है , माफ़ी चाहता हु। …।
                                                                                        ( B.S.Sharma )
                                                                                              Delhi 

Tuesday, August 18, 2015

भिक्षावृति - अभिशाप या श्राप

                                           भिक्षावृति  - अभिशाप   या  श्राप       
                                            किसी जमाने में भारतवर्ष को सोने की चिड़िया कहा जाता था।  देश का
                राजा प्रजा का पालनहार कहा जाता था , न कोई राजा था  न कोई रंक ,  न भीख थी , न कोई
                भिखारी , हाँ  सुदामा जैसे ब्राह्मण जरूर थे , जिन्हे राजा लोग मन माना  दान देकर  विदा
                करते थे।
                                             वर्तमान में देखा जाये तो हर  प्रान्त  के शहर  के  गांव  गली , चौराहो  पर
                भिखारी  देखने को मिलेंगे।  कालान्तर में दान लेने का काम केवल ब्राह्मण  का होता था , जो
                आज भी है , परन्तु वर्तमान में यह  पता करना कठिन काम है की दान लेने वाला कोई ब्राह्मण
                ही है या किसी और वर्ग से है।
                                              भिखारियों  ने तो  " काम " करने का रंग - ढंग  ही बदल दिया है ,कोई
                गाना  गाकर , कोई  ढपली  बजाकर , कोई  शनि देव की प्रतिमा लेकर , कोई राहु केतु के नाम
               इत्यादि , इत्यादि  तरीके से अपना कारोबार  भिक्षावृति के रूप में करते देखे गए है।  इनमे
               अमीर , गरीब ,टैक्स पेयर  सभी किस्म के  हो  सकते है।  परन्तु  उनके हाथो की लकीरे  भिक्षावृति
                कहकर उनका मनोबल  बढ़ाती  है , किसी ने सच ही  कहा  है ,::::
                                                हाथ की लकीरे भी कितनी अजीब है ,
                                                रोने भी नही देती , सोने भी नही देती ,
                                                कमबख्त  मुठी में है , लेकिन काबू  नही "" :::
                                          कहा  जाता है की शनि देव के नाम पर भिक्षा लेने वाले लोग " ज्योतिष "
                का ज्ञान भी रखते है, परन्तु फिर भी वे "भिक्षावृति " का पीछा नही छोड़ते , कहा  जाता है
                इन लोगो को लक्ष्मी  जी का  श्राप लगा हुआ है , इन सब बातो को किवदंतियों  के रूप में
                लिया जाये  या  लोकोक्ति ::: जो इस प्रकार  है ;
                                           ::: जैसा खाया  अन्न  वैसा हुआ  मंन ,,,,
                          सरकार प्रयासरत है की भिक्षावृति  बंद हो , ठीक उसी प्रकार सामाजिक संस्थाए
                (   NGO) भी  इन लोगो के वेलफेयर के लिए प्रयत्नशील है , इनके लिए ( begger home )
                awas suvidha   ,  काम धंदे को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।   हा  इतना जरूर है की
               " शनि दान " ग्रहण करने वाले लोग  , वर्ग ,  आत्मग्लानि के शिकार तो है ,परन्तु
               भिक्षावृति क्यों नही छोड़ पाते  , यह कहना मुस्किल है।
                                         भाइयो  भिक्षावृति  कैसे  बंद हो इसके लिए आपका सहयोग , आपके
               सुझाव मिलते  चाहिए , कभी तो कोई ऐसा सुझाव मिलेगा ही जिससे की कुछ हल निकल  पाये।
                                                                                       ( B.S.Sharma )
                                                                                            Delhi .

Saturday, August 15, 2015

भिक्षावृति : बनाम : शनि दान

                             
                                                   भिक्षावृति : बनाम : शनि दान
                           भरगुवंशी  बंधुवर ,:::::::: आजादी के इस ६९ वे वर्ष घाट पर सभी देशवाशियो को बधाई :::::
                                                  भाइयो आज हम आज़ादी की ६९वि वर्षगांठ मना रहे है।  सभी गरीब अमीर
                छोटे बड़े खुश नजर आ रहे है , क्यों न हो इस दिन भारतवाशियों को अंग्रेजो की दासता से छुटकारा
                मिला था।  बहुत  ही निर्णायक  दिन था १५ अगस्त , १९४७  , जिस दिन अंग्रेजो को हमारे देश निकाला
                गया।  आजादी के इन वर्षो में हमारे देश ने काफी उपलब्धिया  हासिल की है।  जिसमे हमारे देश में
                रहने वाले सभी पुरुष , महिलाये , छोटे , बड़े  , सभी का अभूतपूर्व योग दान रहा है।  यहाँ  मैं
                उल्लेख  करना चाहुगा की हमारे  भृगुवंशी समाज ने भी काफी उन्नति  हासिल की है।  आज
                भिरगुवंशिये ब्राह्मणो के बच्चे  अपना व्यवसाय की तरफ ज्यादा धयान देते   है , नोकरयो में भी
                दिलचस्पी  बढ़ी है  अत: समाज के  कुछ लोग अच्छी पोस्टो से सेवा निवृत हो चुके है , कुछ होने
                वाले भी होगे।  वर्तमान में हम लोग , हमारे समाज  के  बच्चे  ( Education )   लेकर  ( A class
                officer , Advocates, Engineer , Professor ,Businessman, Education field, etc.etc ) me
                अपना  नाम लिखाने  में सफलता हासिल की है।  बहुत ही ख़ुशी है , हमारे कुछ लोगो की
                गिनती   सम्पन्न  परिवारो में की जाती है।  कुछ लोग गरीब भी  है , जो अपना पुराना (पैतृक)
                धंधा  कर के अपने  परिवार का पालन पोषण करते है, जो उनकी मजबूरी कही  जा सकती है
                ऐसा हर जगह , हर परिवार में नही है , कुछ गिने चुने ही लोग है. . धीरे धीरे वे लोग भी इस
                व्यव्शाय को छोड़ देंगे ,  यह  मै  आशा करता हु।
                                                    भरगुवंशी  भाइयो , सरकार ने  भिक्षावृति कानून हर प्रान्त में निशेध
                किया  हुआ है , परन्तु फिर भी भिक्षावृति हमारे देश में कैंसर का रूप ले रहा है , हमारे समाज के
                बहुत कम लोग शनि दान ग्रहण करते है , जबकि हमारे समाज की आड़ लेकर दूसरे वर्ग के
               लोग शनि दान ग्रहण करते है। , बहुत सी (NGO)  ने भी इस बात को स्वीकार किया है।
               अत: आजादी के इस  शुभ  अवसर पर हम यह बीड़ा उढ़ाये  की अगले वर्ष तक , हमारे समाज
                का  कोई  भी व्यक्ति ( भिक्षा व्रती ) गलियो में चौराहो पर नही करेगा।
                                                                                           (  B.S.Sharma ).
                                                                            Sanyojak, & (Founder Member , Akhil
                                                                            Bhartiya , Bhirguvanshi, Brahman,
                                                                                  Mhasabha , Delhi .

             

   

Sunday, August 9, 2015

" डकोत -बनाम शनि दान "

                                                     "  डकोत -बनाम  शनि दान "
                      
                                पिछले सप्ताह (वट्स -अप ) पर " डकोत  जाति  के मुद्दे पटल पर बहस करते हुए देखने 
को मिले,काफी चर्चा का विषय बना रहा , फिर भी कोई निष्कर्ष नही निकला।  इस चर्चा को आपके लोगो के समक्ष इस प्रकार रखे जाने  की अनुमति चाहते हुए अपने कुछ विचार व्यक्त कर रहा हु… 
                                प्राय : देखा गया  है की दिल्ली में शनिवार के दिन ( शनि दान ) लेने वालो की चौराहो पर 
भीड़ सी लगी रहती है ( शनि आइडल ) एक बर्तन में  दिया जलाकर ,धुप लगाकर ,लोगो को शनि भगवान के रूप  में प्रेसित किया जाता है, दानदाता भी श्र्दा अनुसार दान देते है , चौराहो पर भीड़ भी लग जाती है , कई बार 
तो आवागमन भी  बाधित  हो जाता है। ठीक उसी प्रकार गलियो  में भी शनि दान लेने वाले देखे जा सकते है।  
शायद इसी प्रकार  का वातावरण दूसरे प्रांतो के शहरों एवं गावो में भी होता होगा।  
२.  प्राय : दिल्ली के मेन  (प्रमुख ) बाजारों में  जहां  भीड़ भाड़  अधिक होती है ,  गलियो में कुछ   लोग 
एक ( बर्तन ) में शनि आइडल  रखकर , धुप ,दीप जलाकर छोड़ देते है , उसमे कुछ  सरसों का तेल देखा गया 
है , दानदाता उसमे श्रद्धानुसार दान दिक्षणा  डाल  देते है , शाम होने तक उसमे काफी मात्रा में तेल एवं पैसा 
इकठा हो जाता है , शाम को आकर वहां उस बर्तन और दान को उठा लिया जाता है। लेकिन यह कहना 
मुस्किल है की यह दान किसी डाकोत जाति के परिवार को जाता है या  कोई दूसरे वर्ग के लोग इस काम को 
कर रहे है , ( डाकोत जाति ) के लिए यह एक विचारणीय मुद्दा है।  शायद इस प्रकार दूसरे प्रांतो में भी किया 
जा रहा हो /
३.  शनि दान ( राहु केतु दान ) शनि गृह के प्रकोप से बचने के लिए दिया जाता है , यह धारणा प्राचीन  काल से 
चली आ रही है,  यह भी  कहा जाता है की इस प्रकार का दान (डाकोत ब्राह्मण) को ही देना उचित बताया गया है 
सवाल यह उठता है की  इसके पीछे ( प्राचीन धारणाये क्या है , क्यों है ,( क्या  और क्यों ) यह दानं डाकोत के 
अतिरिक्त कोई और लेने का अधिकारी क्यों नही ,क्योकि  आजकल तो दान लेने वालो की  कतारे  लगी रहती 
है , किसी के चेहरे पर थोड़ा ही लिखा है की यह ब्राह्मण है , या की डाकोत ब्राह्मण है , न ही इस प्रकार की सरकार  की ओर से कोई ( आइडेंटिटी कार्ड ) बनाये हुए है।  
 ४.  प्राय : वर्तमान परिवेश में यह देखा जा रहा है की " डाकोत जाति " ( डाकोत समाज ) के  अधिकतर लोग 
इस व्यवशाय  से जुड़े हुए नही है , वे लोग शनि दान ग्रहण नही करते , न ही उनके बच्चो का  इसमें इंट्रेस्ट 
है, परन्तु तिरस्कृत उन  लोगो को होना पड़ता है अर्थात ( वे लोग   scapegoat) बन कर ज़िंदगी जी रहे है
  इसे  कहते है ( करे कोई  और भरे कोई ) सत्य में यह मुहावरा  यहाँ  लागु होता है। अधिकतर डाकोत जाति 
के लोग  अपना व्यव्शाय ,नौकरी  कर रहे है।  परन्तु  पूरा वर्ग तिरस्कृत होता देखा गया है। 
५. भारतवर्ष में असंख्य शनि मंदिर बने हुए है , उन मंदिरो me शनि पुजारी (डाकोत ब्राह्मण ) नही होते , उनमे 
दूसरे ब्राह्मण वर्ग अथवा दूसरी  जाति  के लोग दान ग्रहण करते है ,( फिर क्यों डाकोत समाज ) तिरस्कृत 
होता है , :::::::: इस प्रथा को मध्य नजर रखते हुए मैं आप सभी बुद्धिजीवी वर्ग ,युवा वर्ग , इत्यादि , सभी के 
रूबरू होते हुए उनके विचार जानना चाहता हु , निम्न मुद्दो  पर किर्पया अपने विचार रखे  ::
        (   १)  शनि दान देने की प्रथा कब और कैसे पड़ी। … 
       ( २)  यह दान लेने का कौन  अधिकारी  है  और क्यों ? 
       (३)  दूसरे ब्राह्मण या  दूसरी  जाति  (वर्ग ) के लोग जो इस काम से जुड़े हुए है , क्या वे लोग इस दान को 
              ग्रहण नही कर सकते , यदि करते है तो उसका परिणाम क्या होगा ? 
                                                             ::::::::::::::::: इसके अतिरिक्त ::::::::::
 १. भारत वर्ष में भिक्षावृति कानून लागु है , फिर भी लोग कर रहे है।  यदि सरकार , प्रांतीय सरकार से इस 
विषय पर  पत्र व्यवहार किया जाये  की डाकोत जाति  इस व्यव्शाय से अपने आपको अलग करती है , या 
डाकोत जाति  के लोग यह कार्य नही कर रहे ,तो इस पर आप लोगो की क्या राय है  ( किर्पया   अपने विचार )
रखे , :::::  इस बात को मध्य नजर जरूर रखा जाये की जो इस कार्य से जुड़े हुए है , उनका भरण पोषण किस 
रूप से ( किस तरह ) होगा , उनकी सहमति का भी धयान  रखा जाना चाहिए।  
(५) यदि सरकार से ( डाकोत जाती ) का नाम बदलने की पर्तिकिर्या की जाये (जारी रखी ) जाये  हर प्रान्त में 
      तो क्या समस्या का समाधान हो जायेगा ,क्योकि  ( शनि दान ) लेने वाले अर्थात भिक्षावृति तो खत्म नही 
     होगी , तो जाती का नाम बदलने से क्या प्रभाव होगा , कृपया , उलेख करे।  
                                 शनि दान लेने वाले हर सहर हर प्रान्त में सक्रिय है , तरह तरह के नमो से जाने जाते है 
जैसे ,जोशी , ज्योत्षी , डाकोत ,शनिस्चर्या , देशांतरि ,शनिदेव , शनि  इत्यादि , इत्यादि ,( डाकोत एवं जोशी ) 
दोनों एक ही नाम से जाने जाते है , इसमें कोई  अंतर है तो    कृपया  बताये , क्या जोशी लोग शनि का दान नही 
लेते।  
                   सभी बातो को मध्य नजर रखते हुए आप अपने सुझाव  ( इसके  फायदे एवं नुकशान ) दोनों का 
उलेख करते हुए  लिखे , बताये , बहस करे।  बुद्धिजीवी  वर्ग भी इस चर्चा में शामिल होकर अपने विचार रखे 
तो बेहतर होगा , समाज के प्रमुख व्यक्ति , सामाजिक संस्थाए ( भिरगुवंशिया सभी प्रांतो की संस्थाए ) यदि 
उचित लगे तो इस पर अपने विचारो से अवगत कराये क्यों की , यह एक या दो व्यक्तियों का प्रश्न नही है ,पुरे समाज से जुड़ा हुआ विषय है।  अत : करवद्ध प्राथना है की  इसके लिए सभी प्रांतो के लोग एक जुट होकर 
आगे  आये  अपने विचार रखे , समाधान  एवं नुकशान का अवलोकन करे  तभी पूरा समाज तिरस्कृत होने से 
बच सकता है , यदि मै यह कहू  की हम तो जोशी है , डाकोत नही तो ऐसी  बाते समाज  हित  की नही।  
 नोट : मेरी भावना किसी के प्रति कटाक्ष या दुर्भावना से प्रेरित नही है , इसे ( otherwise )  में न  लेते हुए 
समाज को बेहतर सम्मान दिलाने के लिए आगे आये , आना होगा।  गलती की माफ़ी चाहता हु। .... 

                                                                                   (  B.S.Sharma )
                                                                                         Delhi . 9810710034.