Sunday, January 8, 2017

Detya Guru Shukraachary

 भृगुवंशी -- बी. एस। शर्मा                                         कुछ ज्ञान वर्जन बाते एवं ऋषि महाऋषियों के नाम एवं सम्बन्ध
    देवो के गुरु। ..... बृहस्पति
बृहस्पति जी की पत्नी।  :::: तारा ( बृहस्पति जी की पत्नी तारा गर्भवती हो गई , लेकिन जब बृहस्पति को संसय हुआ तो उन्होंने पत्नी से जानने की कोशिस  की , जब यह मालूम हुआ की गर्भ में पल रहा बच्चा चन्द्रमा का है तो बृहस्पति गुस्से में आ गए , इस पर भय होने पर तारा  ने गर्भस्त पुत्र का परित्याग कर दिया. सुंदर पुत्र को देखकर बृहस्पति एवं चन्द्रमा में द्वेष बढ़ गया।  बात ऋषियों तक पहुंची तो ऋषियों ने फैसला किया की चन्द्रमा के वीर्य से होने से यह पुत्र चन्द्रमा का ,वीर्य प्रधान मानते हुए यह फैसला लिया गया।
महाऋषियों एवं मनु आदि स्मृति कारो  ने अध्याय ७ श्लोक व् महाभारत अनुशासन पर्व ४७२ श्लोक २८ में पुत्र निर्णय पर बीज की प्रधानता दी है। अत: उसी का पुत्र एवं जाति मानी  जाती है
बृहस्पति के पुत्र का नाम। .... बुध
बुध का विवाह वैवस्वत मनु की पुत्री इल्ला से बुध का विवाह हुआ था ,जिससे पुरुरवा का जन्म हुआ।

गाधि की कन्या का नाम सत्यवती था ,इनका विवाह भृगुवंश ऋषि ऋचीक से सम्पन हुआ। ( कहि कहि ऋचीक को महृषि शुक्राचार्य  जी का पुत्र बतलाया गया है।

 गाधि के पुत्र विश्वामित्र हुए। इनका दूसरा नाम विश्व रथ था। .... विस्वामित्र की पहली पत्नी dustrta  के गर्भ से अस्टक का जन्म हुआ था (   विश्वामित्र छत्रिय से ब्रह्म ऋषि हुए ) ::::::

बृहस्पति :::: ये देवताओ के गुरु है। देव गुरु बृहस्पति श्रद्धा के गर्भ से उतपन हुए। जो अंगिरा के पुत्र कहे जाते है।                     इनकी पत्नी तारा  है , जिन्हे चन्द्रमा ने बलात हर लिया था. शिव एवं ब्रह्मा जी ने बीच बचाव कर पत्नी को लोटा दिया गया था।
बृहस्पति ने अपने बड़े भाई उतथ्य की पत्नी ममता से गर्भावस्था में सहवास किया था , जिससे भारद्धाज का
जन्म हुआ , बुध , बृहस्पति की पत्नी तारा से सोम ( चन्द्रमा ) के पुत्र माने जाते है।
भगवान श्री कृष्ण ने  देवताओ के पुरोहित के रूप में बृहस्पति को अपने अंशावतार कहा  है।
:: पपुरोधसाम्  च मुख्यम मा बिधि पार्थ बृहस्पतिम् " सेनानी नाम्ह स्कंध "

अंगिरा और भिर्गु दोनों ही ब्रह्मा के मानस पुत्र बताये जाते है।
दोनों के दो दो पुत्र हुए , इनमे से अंगिरा का पुत्र बृहस्पति एवं भरगु के ज्येष्ठ पुत्र का नाम कवि , जिसे (शुक्र) अर्थात  शुक्राचार्य भी  कहा जाता है।
दोनों पुत्रो की शिक्षा दीक्षा का जिम्मा अंगिरा को देकर भरगु जी तपस्या को चले गए. परन्तु अंगिरा अपने पुत्र को पढने में ज्यादा रूचि दिखाने लगे, जिसके कारण शुक्राचार्य जी अंगिरा से इज़ाज़त लेकर किसी दूसरे गुरु के पास शिक्षा लेने चले गए।
शुक्राचार्य जी गौतम के आश्रम पर गए , उन्होंने उनको बताया की तीनो लोको के गुरु भगवान शंकर है , उनके पास जाओ और शिक्षा ग्रहण करो।
शुक्राचार्य ::::::::: जी गोदावरी के तट पर आकर भगवान शिव का पूजन किया , स्मरण किया , उनकी स्तुति करने लगे. . ::::::::::: शुक्र की भगति से प्रशन होकर महेश्वर प्रकट हुए ,और वरदान मांगने को कहा।
शिव ने उन्हें,उनकी इच्छानुसार लौकिक एवं वैदिक विधाए सभी प्रदान की ,लेकिन शुक्राचार्य जी ने कहा भगवान यदि आप मुझ पर प्रश्न है तो मुझे मृत प्राणियों को जीवित करने वाली विद्या दे दीजिये. .महादेव ने उन्हें संजीवनी  विद्या  भी प्रदान की।

दैत्यों। .. :::::: ने शुक्राचार्य जी को गुरुवरण किया और शुक्राचार्य जी दैत्यों के गुरु बन गए।
                                                                                                                                                    शुक्राचार्य  जी की पत्नी का नाम  जयंती था ,जयंती के पिता का नाम शचि था

दैत्यों की उतपत्ति ::::::::: दिति नाम की कश्यप पत्नी के गर्भ से दैत्य जाती की उतपत्ति हुई ,जिसने हिरण्यक्ष ,एवं हिरण्यकश्यपु नाम के दो पुत्र व् सिंहिका (निऋति )नाम की एक पुत्री को जन्म दिया। सिंहिका से राहु (निऋति ) का जन्म हुआ।

हिरण्यकशिपु की बहन सिंहिका दांव राज विप्रचिति को ब्याही थी।
हिरण्यकशिपु के उनकी पत्नी कयाधु द्वारा प्रह्लाद ,अनुह्लाद ,हलाद और संह्लाद  चार पुत्र हुए।  इनकी एक पुत्री दिव्या थी , हिरनकुशिप ने अपनी पुत्री दिव्या एवं दानव राज पुलोम ने अपनी पुत्री पौलोमी का विवाह महाऋषि भरगु जी से किया था।
दिव्या से महर्षि भरगु को शुक्र काव्य (कवि)  उशना नाम के प्रसिद्ध  पुत्र हुए। जो दैत्य दानव कुल का याचक हुआ ,
पौलुमि की संतानो में ::::::: च्वयन ,ओर्व , ऋचीक ,जन्मदग्नि एवं परशुराम हुए।
दिति ने भरत गणो को भी उतपन किया था।

प्रह्लाद का पुत्र बलि हुआ :::::: बलि के काल में ही दैत्य एवं दानवो ने मिलकर समुन्द्र मंथन किया।

भरगु कच्छ भड़ोच में राजा बलि ने दस्वमेध यज्ञ  किया था।

दक्ष की तीसरी कन्या दनु का विवाह कश्यप से हुआ था।
दक्ष की पत्नी द्वारा छबीस नाग वंश चले।
मनसा देवी कद्रु की कन्या है।  तेजस्वी आस्तिक मनसा देवी के पुत्र कहे गए है।
मनसा देवी लक्ष्मी देवी के अंश  से प्रकट हुई थी।

कश्यप वंशी ऋषियों में ही कश्यप ,सहवत्सार ,नैध्रुव , नित्य , असित ,देवल पोलुम ,दिव्य आदि ब्रह्मवादी ऋषि हुए है।

ईत्व्य की पत्नी ममता के गर्भ से बृहस्पति द्वारा भारद्वाज का जन्म हुआ था।  मरुत गण ने इनको पाला पोषा था , भरद्वाज की पुत्री श्र्ण्वति की सेवा से प्रशन होकर इन्दर देवता इन्हे स्वर्ग ले गए थे।

भरद्वाज के धताची  नाम की अप्सरा से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ था।
द्रोणाचार्य का विवाह श्रदां की पुत्री किर्पी  से हुआ था।  जिसके गर्भ से अस्वस्थामा नमक पुत्र पैदा हुआ।

महर्षि पुलस्त्य  :::::::: इन्हे भी ब्रह्मा का पुत्र माना   गया है।  इनकी पत्नी हविर्भू से महर्षि अगस्त और महत्पश्वी विश्रवा ये दो पुत्र उतपन हुए।

विश्रवा मुनि की  माता इडविडा (इलविला) मनु पुत्र नरिष्यन्त  के पुत्र तृणबिन्दु की पुत्री थी।  इडविडा के गर्भ से
यक्षराज कुबेर का जन्म हुआ था , कुबेर का दूसरा नाम वैश्वण था , जिसे मह्रिषी भरद्वाज ने अपनी कन्या दी थी।

विश्रवा मुनि का दूसरा नाम विंशतिग्रिव भी था ,(ब्रह्मवेशपूर्ण) उनकी दूसरी पत्नी  केशनि से रावण , कुम्भकर्ण ,विभीषण , व् दो पुत्रिया  त्रिजटा एवं शूर्पणखा उतपन हुई थी।  रावण का दूसरा नाम दशग्रीव भी था।


रावण वरुण आदि के बैर के कारण वरुण की नगरी अलकापुरी से सपरिवार निकल कर लंका दिव्प में जा बसा था। वही से उसने  मय दानव की पुत्री मंदोदरी से विवाह किया था।  मंदोदरी की माता (जो मय दांव की पत्नी थी ) का नाम हेमा था।  पुलस्त्य की अन्य पत्नी प्रीति से दतोलिका का जन्म हुआ था।
महऋषि भृगु जी - ब्रह्मा जी के पुत्र
महृषि भृगुजी के पुत्र। .. दिव्या पत्नी का वट व्रक्ष = कवि [शुक्राचार्य ] शुक्र ,इन्हें काव्य उशना भी कहते है।
                                     शुक्राचार्य के षंड [षण्ड ]
                                      षंड के शंकराचार्य ,  शकराचार्य के शांडिल्य , शांडिल्य के डामराचार्य [डंक मुनि ,डंक
                                       नाथ ,डंक ऋषि ] के नमो से भी जाना जाता है।
कवि ,शुक्राचार्य पुत्री देवयानी , जिनके पति राजा ययाति हुए।
डामराचार्य [डंक ऋषि ]के  पाँच पुत्र भये - डिंडिम , दुरतिश्य ,प्रतिष्य ,सुषेण , शल्य।
ततपश्चात महृषि -डिंडिम के वंश कर्म में - पूर्णी ,चन्द्रमणि ,नागमणि , नाभाचार्य ,दर्भा ,शरभंग ,वर्धमान ,
                             वसुमान ,वैज भुज [वैज ],नन्द्शेखर , मुक्तामणि ,चिंतामणि , मधुछन्द ,कण्ठाचार्य[कण्ठ
                            नील ,वत्स ,मांडकय एवम शांडिल्य [छँडुल ] आदि ऋषियों ने इस वन्स में जन्म लिया।
                             इनमे की गोत्रकार ऋषि भी हुए।
महृषि शुक्राचार्य जी की तीन पत्नियों का उळेख मिलता है।  १. पितरो की मानसी कन्या गो , २-देवराज
इन्दर की पुत्री जयंती  ३- पिर्यवर्त की पत्नी बहिस्मति से उत्प्न कन्या ऊर्जस्वती।
इसका उल्लेख -भागवत स्कंध ५ श्लोक ३४ में मिलता है।
शुक्राचार्य की पत्नी गो से शहद ऋषि का जन्म हुआ।
गीता अध्याय १० श्लोक ३७ में भगवान श्री कृष्ण ने कवियों में शुक्राचार्य को अपना स्वरूप माना है।                                             महृषि भृगु जी की उतपत्ती - महाभारत में इनकी उतपत्ति ब्रह्मा जी के ह्रदय से बताई
गई है।  वायु पुराण में इनका ब्रह्मा के मानस पुत्रो में उल्लेख किया गया है। मनु स्मृति में इनकी उतपत्ति
अग्नि से बतलाई गई है। भृगुवंशियों की गाथा मत्स्यपुराण, पदम् पुराण , महाभारत , अथर्ववेद -ऋग्वेद ,
ब्रह्मवेवपुराण ,गणेशपुराण,रामायण आदि में मिलती है. ---------
भृगुवंशीय ब्राह्मण मूलतः: तीन विभिन वँशो [शाखाओ] में विभाजित होकर समाज में अपनी अलग
पहचान बनाये हुए है।
१। भृगु पत्नी ख्याति की सन्तान।
२-भृगु पत्नी पुलोमा की सन्तान
३-भृगु पत्नी दिव्या की सन्तान।
                             [   भृगु पत्नी ख्याति का वट व्रक्ष ]
      भृगु पत्नी ख्याति  जो महृषि कर्दम की पत्नी देवहुति की पुत्री थी। जिसके गर्भ से दो पुत्र  धाता एवम
विधाता , तथा एक पुत्री श्री लक्ष्मी जी का जन्म हुआ  , श्री लक्ष्मी भृगु जी की कन्या , विष्णु भगवान को ब्याही
गई थी।
                               [ भृगु जी की दूसरी पत्नी पुलोमा का वट व्रक्ष ]
                     भृगु पत्नी पुलोमा से मह्रिषी च्यवन का जन्म हुआ। राजा शर्याति की पुत्री शुकन्या से च्यवन
का च्यवन का विवाह हुआ। च्यवन यज्ञ करता थे , तथा राजा शर्याति के दामाद एवम पुरोहित भी थे। च्यवन के पुत्र ओर्व एवम ऋचीक हुए।  ओर्व का विवाह  राजा  गाधि  की पुत्री सत्यवती से हुआ जो विस्वामित्र की बहन थी।  जिसके गर्भ से जमदग्नि आदि सौ पुत्रो का जन्म हुआ , विश्वामित्र जमदग्नि के मामा थे। इन दोनों का जन्म
भृगुजी के आशिर्वाद से हुआ। विश्वामित्र और वशिस्ट आपस में बड़े प्रसिद्ध प्रतिद्वंदी थे।  महृषि वसिष्ट सूर्यवंशियो के गुरु बने।   जन्मदग्नि का विवाह राज ऋषि रेनू की पुत्री रेणुका से हुआ था। जमदग्नि की पत्नी
रेणुका से परशुराम का जन्म हुआ।  जिन्होंने २१ बार छत्रियो का संहार किया।
                                  [ भृगु जी की तीसरी पत्नी हिरणाकुश की पुत्री दिव्या से महृषि शुक्राचार्य जी का
जन्म हुआ।  जिन्हें दैत्यों का कुल गुरु भी कहा जाता है।  इनका दुसरा नाम  कवि उशना था।  एकमत के अनुसार
भृगु पत्नी दिव्या से कवि एवम कवि से शुक्राचार्य का जन्म माना जाता है।
  पाठको को यहां बताना उचित होगा की भृगुवंशी इतिहास में भृगु वट व्रक्ष तीन वंशो में बता हुआ है। लेकिन
दो वंश ही प्रमुख माने जाते है।   १... भृगु पुत्र च्यवन वंश   २. भृगु पुत्र शुक्राचार्य वंश।
शुक्राचार्य जी दैत्यों के गुरु माने जाते है।  जिनके पास संजीवनी विद्या थी , जो उन्होंने देवो   के देव
महादेव  की तपश्या करके प्राप्त की थी।  शुक्राचार्य वंश में ही महृषि डामराचार्य हुए ,जिनका वर्णन ऊपर
किया गया है , जिन्हें डंक ऋषि , डंक मुनि के नामो से भी जाना जाता है , डाकोत ब्राह्मण भी इन्ही के
वंश से सम्बन्ध रखते है।                                                                    
                                                                                                    साभार -भृगु वंश -गाथा




                         
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                           


Wednesday, January 4, 2017

                                           " इतिहास का महत्व "
                                            जिस समाज का अपना कोई इतिहास नही होता, वः समाज कभी शाशक नही
बन पाता , क्योकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है ,प्रेरणा से जाग्रति आती है , जाग्रति से सोच बनती है , सोच
से ताकत , ताकत से शक्ति , एवम  " शक्ति शंघे कलियुगे " ..
                              भृगुवंशी "डाकोत जाति " के कालांतर के इतिहास पर गोर किया जाए तो इसे गौरवमय
इतिहास की संज्ञा दी जा सकती है ,जिसमे महाऋषि भरगु से शुरू होकर , महृषि डामराचार्य ( डंक ऋषि - डंक नाथ , डंक मुनि } पर आकर नजर रुक जाती  है , अर्थात महऋषि भृगु जी  वट व्रक्ष के रूप में प्रचलित होकर , शुक्राचार्य  जी के वंश में  महऋषि [डंक ,डामराचार्य जी ] जैसे समस्त ऋषियों का काफी योगदान रहा , इस
गौरवमयी इतिहास के विषय में " डाकोत जाति " के सभी छोटे -बड़ो को इतिहास का ज्ञान , पूर्वजो के
बारे में जानकारी होना  जरूरी है की किस तरह हमारे ऋषि मुनियो ने " भृगुवंश  की  शुक्राचार्य जी की पीढ़ी
को इतिहास में क्या स्थान दिलाया , और सभी पूर्वज इतिहास के पन्नो पर अपना नाम स्वर्ण अक्षरो में
लिखाने का गौरव प्राप्त किया।
                        सबसे पहले महऋषि शुक्राचार्य जी के विषय में कुछ पाठको को स्मरण करते  हुए आगे बढ़ते है। शुक्राचार्य जी दैत्यों के गुरु एवम देवो के देव महादेव  के भक्त कहे जाते है , जिन्होंने शिव भग्ति करके
संजीवनी विद्या प्राप्त की , जिसे आज तक कोई भी ऋषि - महात्मा हाशिल नही कर पाए , इतना ही नही
उन्होंने आकाश में भी शुक्र तारे के रूप में अपना स्थान पाया , और जब तक शुक्र तारा अस्त रहता है , कोई
भी शुभ कार्य नही किया जा सकता। इसी वंश में शुक्राचार्य के अतिरक्त शुक्राचार्य जी के पुत्र षंड एवम मर्क
हुए , जिन्होंने हिरणाकश्यप के पुत्र प्रह्लाद को शिक्षा दीक्षा देकर उस मुकाम पर पहुचाया , जिस प्रह्लाद की
भग्ति से उसके पिता को भी मात खानी पड़ी।
                       महृषि डंक { डामराचर्य , डंक नाथ , डंक मुनि } का नाम भी शुक्राचार्य वंसज "डाकोत जाति "
से  जोड़ कर देखा जाता है , ड़क ऋषि परम् वैरागी पुरुष थे ,इष्ट के सच्चे भगत थे , सुख वैभव ,भोग विलास
से भी दूर रहकर प्रभु भग्ती में लीन रहे और शंकर जी के प्रति अनुरागी रहे।  गुजरात में जब वो डाकोर में
तपश्या कर रहे थे , तो श्री कृष्ण स्वयं भीम के साथ उनसे मिलने पहुचे थे , क्योकि ड़क ऋषि कृष्ण जी के
भी सच्चे भगत थे। इस प्रकार देखा जाए तो इस जाति का इतिहास काफी गौरव शाली एवम महत्वपूर्ण
माना जाता है।  थोड़ी और नजर दौड़ाई जाए तो इसी वंश में "सुषैन वैद " का नाम कौन नही जानता ,
राम रावण युद्ध में जब राम के भाई लक्छ्मण जी मूर्छित हो गए थे , उस समय सुषैन वैद ने उनका उपचार किया और लक्छ्मण जी को जीवन दान देकर श्री राम के दिल में जगह बनाई ,जिसका नाम भृगुवंशी इतिहास
में सुनहरी अक्षरो में लिखा गया।
                            इस जाति  के  लोग अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते है। तथा समस्त मानव
जाती के दुःख-दर्द में अपने पूर्वजो के बनाये रास्ते पर चलते हुए , समाज हितार्थ ,पूर्ण योगदान देते है।
इन्हें  शनि उपासक का दर्जा प्राप्त है , दानदाता की सभी पीड़ा को सहन करते हुए , दान दाता की रक्षा
भी करने में भी इनका योगदान अवश्य पाया जाता है , क्योकि , इनकी जिव्हा पर सरस्वती का वास है।

                     
                                                                                                             बी: एस :शर्मा     






       


  

Thursday, November 10, 2016

BHIRGUVANSHI:                  "   सूर्यपुत्र शनिदेव  "        ...

BHIRGUVANSHI:                  "   सूर्यपुत्र शनिदेव  "
        ...
:                  "   सूर्यपुत्र शनिदेव  "                                 आजकल कलर colour  चैनल पर आने वाले सीरियल 'शनि'...
                 "   सूर्यपुत्र शनिदेव  "
                                आजकल कलर colour  चैनल पर आने वाले सीरियल 'शनि' में महाऋषि शुक्राचार्य जी जो की महाऋषि ' भरगु ' के प्रमुख पुत्र थे ,उन्हें सीरियल में एक राक्षस के रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है ,जबकि मेरे विचार  से महाऋषि शुक्राचार्य दानवो के गुरु थे , न की वो राक्षस , बताया जाता है की शुक्राचार्य जी के
पास संजीवनी विद्या थी , जो उन्होंने तपश्या करके देवो के देव महादेव से प्राप्त की थी।
         उन्हें राक्षस के रूप में दिखाया जाना , एक अपमान है , उनके रूप के आधार पर उन्हें महिमा मण्डित
किया जा रहा है , जो भृगुवंशी ब्राह्मण ( शुक्राचार्य वंसज ) के लोगो की भावना के खिलाफ है।
          मैं निवेदन करुगा की सीरियल से जुड़े actors  एवम प्रोड्यूसर इस पर विचार करे , और महर्षि
शुक्राचार्य जी को राक्षस के रूप में प्रदर्शित न किया जाये।



Thursday, June 30, 2016

Book Global encyclopedia of the Brahman Enthography. by K.S.Krishna .
                                                                 
                                                    "Joshi "
       The Joshi are the endogonumous Brahman Community. The synomous are Bhaddri, Bhattri,Dakaut and Jyotishi.
Demography..   The perreceive teir wide spread distribution , in the Distt, of Hardoi, Sitapur, Etah,
                          Shahjahan pur Farrukhabad , Mainpuri, Kanpur,Unao and Lucknow,where their
                          concentration is more than in other parts of UP.and Uttrachal . They speak different
                          dialects of Hindi and uses Devnagri script with in the kin group and with others :

Social system :-  The community has seven Sub groups Viz: . Bangaraha , Chaubhayiya , Goravansh ,
                            Karia Vansh , Pachraulia , Silothiya vansh , and Sunaraha ..
                            Their Gotras , are Bhardwaj ,Dhakari  & Kashyap . All gotra are equal and there is
                            nohierarchy. They are Brahman in the varna system . The other community also
                            place them high in regional social hierarchy.


                                                                " Dakaut Brahman :
P.22. Community of Himachal prdesh and Punjab .
 The ardpop also pronounced as ardpopo or Harrpop or Ardpop is a small community of Dakaut Brahman , who subsist traditionally on the alms and offerings earned by practising palmistry Rose (1919) traced the etomology of the word Hararpop from THUG or money GRabbers . They are also known as Jyotishi ( astrologers)  and move from place to place in search of clients.  In KANGRA the BUJRUS or Bojrus who also sometimes earn by practising palmistry also subsist & mainly on alms
for the evil stars like satrun , Rahu, & Ketu . Bhole Brahman is also an uncommon synonym for the ARDPOPO in UNA, - Distt. Commonly , they call themselves GAUR BRAHMAN . Similar in the
profession & Palmistry is another groups of DAKAUT Brahman known as Bhatra or Bhatre , who are generally found in Punjab and are Vagrant- Sathu who trace their origin from MADHOMAL , a Brahman saint (ROSE-1919 ) and Popos are distributed in different parts of Bilaspur Distt. and suggest their Migration from Punjab plains during Indian Partition 1947 or earlier . They are presently some land and have settled .    

Social status :- Kinship . TheArdpop , Bujrus,and Bhatras are different sections of the Broader Dakaut brahman community , There is no hierachical differetiation among the different sections but they have some gotra which are used for regulating matrimonial alliens. They claim Gaur Brahman status but other people hesitate to accept them as such. The community is endogomous and practises gotra and village enogamy.           ...........................

Friday, June 17, 2016

B.S.Sharma . Bhirguvnshiyo ki suchi -- Gotrkaar - mntrkaar ityaadi .

वैदिक साहित्य में आये हुए भृगुवंशी ब्राह्मणो की सूचि निम्नानुसार  है , जो की मंत्रकार ,गोत्रकार तथा प्रवर थे। :::::::::::
१. अत्र - भरगु पुत्र
२. अधिपति भरगु पुत्र
३. अनंत भागिन -भर्गु  गोत्रकार
४. अनानत प रूच्चेपी -दिवोदास के पुत्र परुच्छेप का
   पुत्र -सुक्क्त दृस्ता
५. अनुमति भर्गु कुल गोत्रकार.
६. अन्त्य (अन्य ) धर्गु पुत्र
७. अन्त्या पण (अन्यायत) भर्गु पुत्र
८. अपीशी ,अपिश्ली ,भर्गु कुल गोत्रकार
९. अप्नवान - च्वयन के पुत्र। इनकी पत्नी
    रूचि थी
१०. अभ्याग्नि एतशयन - भरगुवंशीय इट्स से संबंधित है
अग्नेराने मंत्रो को द्र्स्ट किया था ,जब ये इनका गठन कर
रहे थे , तब पुत्रो में से अभ्यगनि ने आक्रिंके मुख पर हाथ
रख दिया , और कहा की मेरे पिता पागल हो गए है। इस
पर क्रुद्ध होकर अभ्याग्नि एसिशयनो की पापिस्ट होने का
श्राप दिया।
११. अरूप -भरगु गोत्रीय म्नलकार
१२. अध्य्य -भरगु पुत्र
१३. असकृत भरगु गोत्र कर्ता
१४. आपस्तम्ब -कश्यप। ऋषि द्वारा कराये हुए पुत्र कॉमेस्टी यग में आचार्य थे।  इनकी पत्नी का नाम
      अक्षसूचा ,पुत्र का नाम कर्की था।  इनके नाम पर अनेक ग्रंथो का उल्लेख है ,जिनमे बहुत से उपलब्ध है।
१५. आपस्तंत्रि -भरगु कुल गोत्रकार
१६। आपिशली - प्राचीन ,व्याकरणाचार्य थे. इनका नाम प्राशिने ने उल्लेख किया है।
१७. . असतिषेण -परवरकार थे, ऋषि एवं मंत्रकार में से थे।  तपस्या द्वारा सिद्द्धि प्राप्त हुई।  ये शल के पुत्र         एवं सुहोत्र के पौत्र थे।  इनका संबंध शौनक और गुत्श -मद से था।  ऋष्टिषेण के पुत्र थे , इनके वंश
        का देवापि आर्शितशेन ऋग्वेद का मंत्र द्रष्टा था।
१८. आवेद ( आचाज ) गोत्रकार
१९।  आलूकी ऋषि
२०. आश्चयनि - ऋषि    २१, इट -भार्गव - सुक्तद्रष्टा
२२.  इन्द्रोत देवाप  शौनक -यह कुल नाम है।  यज्ञ में पुरोहित का कार्य किया था। जनमेजय कप ब्रह्म
       हत्या पाप से मुक्त करवाया था।  महाभारत में धर्मोपदेशक के रूप में आये है।
२३. उन्नत -द्युतिमान का पुत्र
२४. उपरिमंडल ( परिमंडल ) गोत्रकार।    २५- उभयजात -गोत्रका   २७. ऋचीक मंत्रकार
२९. एकायन  गोत्रकार     ३०. एतश -भरगुकूल की ओरवशाखा से संबंध है।
३१. एलिक  गोत्रकार
३२. ओर्व(  ऋचीक )  ऋषि प्रवर ,मंत्रकार ,इनके तेज से हैयय अंधे हो गए थे।  इनके क्रोध को जल में स्थित
     कर दिया गया , जिसने वडवानल का रूप धारण किया।
३३. जिर्वेय - ऋषि   ३४.  ओशन्स -उशनस् (शुक्र ) के पुत्र   ३५. क्तायनी -गोत्रकार
३६. कपि - गोत्रकार।  ३७. ---कवि  भरगु पुत्र  ३८.  कांचन - चयवन भार्गव का नामांतर
३९. कायनी गोत्रकार  ४०.  कार्डेमायनि ऋषि  ४१. कार्याणि -(पाशिगी-गोत्रकार)
४२. काश्य - मंत्रकार   ४३. काश्यपि - गोत्रकार  ४४.  कुत्स - गोत्रकार  ४५. कूर्म -गात्रस्मद शुक्त द्रष्टा
४६. क्रत्नु भार्गव -मुक्त इष्टा  ४७- कोगाशी ( सकोरा ) गोत्रकार ४८. काउछस्ति -गोत्रकार
४९. कोठभि -अर्थशस्त्रकार कौटिल्य भरगु गोत्रीय थे -गोत्रकार  ५०. कौत्स -गोत्रकार
५१. कौश्पी -- ५२-कौशी   ५३- ऋतू -भरगु पुत्र  ५४. खांडव  ५५- चुभ्य -गोत्रकार ५६.  गावन
५७. गर्मीय   ५८- गार्गापन  ५९. गार्द्धभि -ऋषि   ६०. घाही यण -गोत्रकार
६१. गुत्स्मद - गोत्रकार ,परवरकार , मंत्रकार तथा सूक्तद्र्स्ट  थे - इन्होने तपस्या की , इंद्र के समान
     तेजश्वी शरीर बनाकर  द्युलोक को व्याप्त किया। इंद्र समझ कर धुनि और च्सुदी दैत्यों ने शस्त्र उठाये
     तब इन्होने वास्तविक इंद्र के स्वरूप का परिचय करने के लिए ऋग्वेद का २-१२ शुक्त लिखा।  इंद्र ने
     मौका पाकर दैत्यों को मार डाला और परसन होकर गुत्स्मद को अक्षय तपस्या का वरदान दिया , और
     कहा ,तुम्हारी प्रार्थना से हम प्रश्न है , अत: तुम्हारा नाम गुत्स्मद शोनहोत्र होगा , गुत्स का अर्थ
     प्राण और मद का अर्थ अमां है।  . ६२. गोस्टाइन - गोत्रकार  ६३. ग्राम्या -यनि  - गोत्रकार
६४. चण्ड - भार्गव --- इनका जन्म चयवन मुनि के वंश में हुआ था।  उस समय के विख्यात कर्मकांडी थे
      सर्पो के यज्ञ के समय जनमेजय के यज्ञ में यज्ञवाद वेताओ में श्रेस्ट ब्राह्मण वंड भार्गव हेतु।
६५. चल कुण्डल -गोत्रकार  ६६. चली गोत्रकार  ६७.  धृत्वि गोत्रकार  ६८. चोदरम्सी गोत्रकार
६९. चौक्षी -नोत्रकार  ७०. चयवन -मंत्रकार  ७१. जयदग्नि -मंत्रकार ,प्रवर
७२. जवीन - गोत्रकार  ७३. जवाली गोत्रकार  ७४. जालधि -गोत्रकार ७५.  जिहब्क - गोत्रकार
७६.  जेवतनयायनी गोत्रकार ७७. त्याज्य - भरगु पुत्र  ७८. तिथि  गोत्रकार
७९. त्रिशिरा - त्वष्टा के पुत्र सूक्त दृष्ट्या
८०।  त्वष्टा - शुक्र और गो के पुत्र थे।  यशोधरा ,वेरोचिनी , इनकी पत्नी थी।
८१. दक्ष - भरगु पुत्र  ८२. दाडिन - गोत्रकार ८३. दध्यच (दधचि ,दधीचि ) मंत्रकार
८४. दम - गोत्रकार  ८५. दिवोदास - ऋषि प्रवर। ८६.  देवपति-गोत्रकार
८७.  देवयानी - शुक्राचार्य जी की पुत्री ८८.  दर्शान भार्गव - मन्त्रदस्ट्
८९. देवापि आर्ष्टि शेण -मन्त्रद्रस्ता  ९०. द्युतिमान -भरगुकूल के ख्याति वंश में उतपन पांडुपरन का पुत्र
९१.  दोनयन - गोत्रकार ९२।  दिवगत भार्गव -शाम पठन करने के कारण स्वर्ग को प्राप्त हुए।
९३. धाता -भरगु की पत्नी ख्याति का पुत्र , इनकी पत्नी भेरू , कन्या आयति थी।
९४. नडायन (नवप्रभ) - गोत्रकार ९५।  नभ - गोत्रकार ९६. नाकुली. - गोत्रकार ९७.  नितिन -गोत्रकार
९८. नील - गोत्रकार  ९९. नैतिश्य - गोत्रकार
१००. नेम भार्गव - शुक्त दृष्टया
=========                                 =========                           =========
१०१. नेक - जिहदु -गोत्रकार १०२. नैकशी -गोत्रकार
१०३.  परशुराम (जामदग्न्य ) चिरंजीवी विष्णु अवतार १०४।  पॄच्छेप देवोदासि -मंत्रकार सूक्त सुकदृष्ट्ता
१०५. पश्वास्य (पथ्यस्व )- मंत्रकार  १०६.  पाण्डोरोची - गोत्रकार
१०७. पिप्लाद - यह अंग्रिशि मंत्रो का प्रयोग करते थे।  अत: आग्रिश कहलाते थे।  इनके पिता दधीचि थे
        देवताओ ने वज्र निर्माण के लिए दधीचि की हड्डिया मांगी , जो उनको दे दी गई।  इनकी माता ने
        पति की इस अवस्था को देखकर अपने गर्भ को निकाल कर पीपल के वृक्ष के निचे रख दिया , व्ही
        इस बालक का पालन पोषण हुआ।  इससे इनका नाम पिप्लाद पद गया।  ये दर्शन के छेत्र में
        अग्रणी थे।
१०८. पिली- गोत्रकार  १०९। पूर्णिमा गतिक  - गोत्रकार
११०. पृथु - मंत्रकार और शुक्त द्र्स्तता।  वेन पुत्र पृथु (वैन्य ) भार्गव वंश से संबंधित थे
१११. प्रथुरश्मि - वृति के पुत्र   ११२.  पीर - गोत्रकार  ११३.  पौलश्य - गोत्रकार
११४. पोष्येण - गोत्रकार  ११५. प्रचेता - मंत्रकार और शुक्त द्रष्टा ११६. प्रत्यूह (प्रत्यह ) गोत्रकार
११७. प्रमव (प्रभव ) - भरगु पुत्र
११८. प्रगति - चयवन के पुत्र।  इनकी पत्नी (धरतली) धृताची थी।  इसके गर्भ से रुरु नामक पुत्र हुआ।
११९. प्रयाग भार्गव - सूक्त द्रष्टा १२०. प्राण (पाण्डु) भरगु ख्याति पुत्र विधाता का पुत्र।  इनकी पत्नी
        पुण्डरीका थी।
१२१. फेनप (फेनब). गोत्रकार  १२२.  बाध्यस्व (व्द्धर्शव ) १२३. बल्कि - गोत्रकार
१२४. वाळवी। गोत्रकार   १२५.. विल्वी - गोत्रकार १२६। वृहद्गिरा - शुक्र कुल में उतपन वरुणी का पुत्र
१२७. वेजमरत - मंत्रकार  १२८. ब्रह्मवान- मंत्रकार  १२९. भागवती - गोत्रकार
१३०.  भार्गव - गोत्रकार  १३१.  भावन - भरगु के पुत्र   १३२.  भुवन - भरगु के पुत्र
१३३।  भूत - एक ब्रह्म ऋषि   १३४।  भरगु - मंत्रकार , गोत्रकार , परवरकार
१३५. भरगुदास - गोत्रकार  १३६- भौनव - भरगु पुत्र १३७. भ्र्स्तकायनी - गोत्रकार
१३८.मंद -(मुंड ) गोत्रकार  १३९।  मटवीगन्ध - गोत्रकार १४०- मथित - गोत्रकार
१४१. मर्क - शुक्र के पुत्र  १४२. मांडव्य - गोत्रकार  १४३ - माण्डुक - गोत्रकार १४४.  मानकायन -गोत्रकार
१४५. माण्डकायनी -माण्डुक का पुत्र  १४६. माण्डके -मंडूक का पुत्र
१४७. मारुत - गोत्र कार ऋषि वर्ग
१४८. मार्कण्डेय - गोत्रकार , इनका पुत्र वेदशिरा था , मूर्धन्या पत्नी थी ,वंशावली में इनकी पत्नी का नाम              धूमपानी का नाम ब्रह्मपुराण में बतलाया गया है।
१४९ - मार्गपथ - गोत्रकार  १५०- मार्गीय - गोत्रकार  १५१.  मालायनी - गोत्रकार
१५२.  मित्रेव - गोत्रकार , मैत्रेय ब्राह्मण तथा metryaani  शाखा के संचालक
१५३. मूर्ध्न - भरगु पुत्र.  १५४. मरकदू - धाता के पुत्र - म्नस्वनी इनकी पत्नी का नाम था
१५५.  मर्ग - (भूत ) गोत्रकार  १५६. मेत्रीय - गोत्रकार  १५७. मौज - गोत्रकार
१५८. मोदगलायन - गोत्रकार  १५९. यज्ञपति - गोत्रकार १६०. यज्ञ पीडायन - गोत्रकार
१६१. यास्क - (यक्सावल) - गोत्रकार  १६२. यागपि - गोत्रकार
१६३.  युन्दाजीत - मंत्रकार  १६४. रंजन - शुक्र वंसज , वारुणी का पुत्र
१६५. दामोद - गोत्रकार
१६६ रुरु - परमती का पुत्र - इनका विवाह स्थूलकेश मुनि की पुत्री  प्रमदवरा से हुआ , प्रमदवरा को सर्प ने
       डस लिया था , तब इसने अपनी आयु देकर उसको जीवित किया।  इनका सर्प जाती से द्वेष दुन्दुम के
       साथ संवाद आदि महाभारत में मिलते है
१६७. रूपी - प्रवर  १६८. देवेश - प्रवर  १६९। . रोकमायनी - गोत्रकार
१७०. रोहिल्यायनी - गोत्रकार ,
१७१ ललाटी , १७२।  लुब्ध , १७३ लोलाक्षी  १७४। लिक्षिण्य  १७५।  लोहवेरिन ( सभी गोत्रकार )
१७६. वजर्षिरस - भरगु पुत्र  १७७. वत्स - भर्गु गोत्री  १७८.  वृतिरिन् - शुक्राचार्य के पुत्र
१७९. वरणम् (विभ) भरगु पुत्र  १८०।  वसु - जन्मदग्नि पुत्र  १८१. वसुद - भरगु पुत्र
१८२. वानयानी - गोत्रकार ,  १८३.  वात्स्य - गोत्रकार  .  १८४. वाह्यान - गोत्रकार
१८५. विद - मंत्रकार एवं गोत्रकार  १८६. विदन्वत् भार्गव - शाम drstta -
१८७. विधाता -भरगु ख्याति पुत्र , इनकी पत्नी नियति थी
१८८.  विरुपाक्ष - गोत्रकार  १८९ - विश्वकर्मा तवस्ता तथा वैरोचनी यशोदा का पुत्र
१९०. १९०.  विस्वरूप - त्वष्टा का पुत्र , देवो का पुरोही , विरोचन का भांजा , असुरो से सम्बन्ध होने पर
        यज्ञ में देवो के सामने असुरो को गुप्त रीती से हमीमार्ग देता था , इंद्र ने अपनी पदवी छीन जाने
        के भय से इसके ३ मस्तक वज्र से काट दिए थे।  इससे विदित होता है की त्रिसिरस और विश्वरूप
        एक होगे.
१९१. विस्ववसु - जन्मदग्नि पुत्र  १९२.  वेद - मंत्रकार  १९३.  विष्णु - गोत्रकार
१९४.  वीतहव्य - गोत्रकार , मंत्रकार , एवं सूक्त दृसत्ता
१९५.  वेदसिरस - मार्कण्डेय के पुत्र इनकी पत्नी का नाम पावरी था.
१९६।   वेन भार्गव - सूक्त द्रष्टा  १९७।  वेकरनी , १९८. वेगयेन  १९९.  बेग्भ्यन्न  २००। वैश्वानरी
          वेहोनरी  २०१, व्याघाज्य ( सभी गोत्रकार )
२०२। वेदभि भार्गव - शुक्त दरिस्टता  २०३. व्य्जय् - भरगु पुत्र  २०४. वैश्रुव -भरगु पुत्र
२०५ ब्याज - भरगु पुत्र  २०६. वेक्श - प्रवर  २०७- वैदर्भी भार्गव = शुक्त डिर्स्टता
२०८।  वैन्य - मंत्रकार एवं गोत्रकार
२०९।  शण्डामर्क - षंड और मर्क ये दो पुत्र पुरषो के नाम है।  दोनों शुक्र के पुत्र थे , ये अशूरो के पुरोहित थे ,
          श्रेस्ट पुरोहित होने का कारण दैत्यों को पराभूत करना देवो के लिए कठिन कार्य था , इसलिए देवो ने
           लालच दिया और सोम के बहाने अपनी और देवो ने कर लिया।  जब यज्ञ शुरू हुआ तब
         संडाम्रक वहा उपस्थित हुए , किन्तु देवो के साथ उनको शोम पान  नही कराया गया और उपहास
         करके निकाल दिया।  शुक्रामंथी गृह लेने का प्रचार शण्डामर्क के लिए हुआ था।
२१०.  शकटाक्ष- गोत्रकार २११.  शाक्टायन - गोत्रकार २१२. शरदिवत्क - गोत्रकार
२१३. शाकल्प - मार्कण्डेय ऋषि का पुत्र था , ऋग्वेद संघिता के संधि नियम बनाने वाले
२१४. शर्कराक्षी - गोत्रकार  २१५।  शार्कराक्ष्य - शार्कराक्षी पुत्र
२१६.  शांगख - गोत्रकार २१७. शलयनि गोत्रकार  २१८.. शिखावरण - गोत्रकार
२१९. शुचि - भरगु पुत्र
२२०. शेनक भार्गव - गोत्रकार, मंत्रकार, तथा शुक्त dirstya
२२१. शोनहोत्र - गुत्स्मद का पैतृक नाम
२२२.  शोकायन जीवंती - गोत्रकार  २२३।  शर्म दागोपी - गोत्रकार
२२३. श्रवा - भरगु पुत्र  २२४ शर्म दगोपी - गोत्रकार
२२५.  श्री लक्ष्मी - भरगु ख्याति की पुत्री।  भगवान विष्णु की पत्नी
२२६. संगालय  २२७।  सनक  २२८.  शंक्त्य  २२९. शय्याणी  २३०. शापि ( सभी गोत्रकार )
२३१. सवन - भरगु पुत्र  २३२।  स्वेशरम - मंत्रकार  २३३.  सुनन - भरगु पुत्र
२३४. शारस्वत - मंत्रकार , वेदविद्या में पारंगत थे , सरस्वती से उतपन दधीचि के पुत्र
२३५.  सुचेतम - वीतहव्य वंशावली में आये हुए गुत्स्मद के पुत्र
२३६. सुन्न  २३७. सुजन्य ( दोनों भरगु पुत्र )
२३८.  सुमति भार्गव - इनको अपने दस हज़ार पूर्व जन्मो की स्मृति थी , अपने पिता को ज्ञान दिया था
२३९.  सुमित्र बयषद् - मंत्र दृसत्ता ऋषि २४०. सुषेण - जन्मदग्नि पुत्र
२४१.  शोकी - गोत्रकार  २४२।  सोमाहुति भार्गव- सूक्त दृसत्ता ऋषि
२४३. शोचरक  २४४।  शोधिक  २४५. सौर  २४६।  सौरी  २४७।  सौह  २४६ स्तनित २४९. स्थपिण्ड
        २५०।  हंसजिव्ह ( सभी गोत्रकार )
२५१. स्वनवात।  शुक्र के वंसज  दियुतिमान के पुत्र थे
२५२. स्थूम्रश्मि - भार्गव - सूक्त डिर्स्टता  २५३।  स्वमूर्ध्न।  - भरगु पुत्र

साभार - भर्गु वंश गाथा।
       




Bhirguvanshi Brahman ( Yuvk - Yuvti ) Parichay Smmeln..

   आदरणीय स्वजाति बन्धुवर
   नमस्कार।
 आपको जानकर यह अति प्रसन्नता होगी की भारत की राजधानी दिल्ली में सामाजिक सशक्तिकरण , हेतु प्रयास जारी है , तथा कुछ रूढ़िवादी परम्पराओ को खत्म करने की
दिशा में विवाह योग्य युवक युवतियों के लिए वैवाहिक परिचय के उद्देश्य से अभिभावकों की उपस्तिथि में
" युवक - युवती परिचय सम्मेलन का आयोजन होने जा रहा है।  सम्मेलन में कई  प्रांतो से युवक युवतियां
अविभावकों के साथ आने की प्रबल सम्भावना है। जिसमे समाज के होनहार बच्चे शिक्षित , बेरोज़गार ,व्यवसायी इत्यादि सम्मिलित होने जा रहे है , यही अवसर है की इसमें  हिस्सा लेकर अविभावक अपने बच्चों के लिए योग्य वर ,वधु का चयन करते हुए भृगुवंशी इतिहास में एक नई रौशनी , नई मिसाल कायम कर सकेंगे।
              ात: आप सभी समाजबंधुओं से अनुरोध है की आप इस शुभ अवसर का फायदा उठाये और
आमंत्रण स्वीकार करते हुए , विवाह योग्य युवक युवतियों को साथ लेकर पधारे , और समाज के इस  अवसर का लाभ उठाये। :::-
कार्यक्रम।   ९ब्जे सुबह से शाम ५ बजे तक                                      आयोजन स्थल
९. . भरुवन्दना एवं पुष्प अर्पण                                 श्री सनातन ,धर्म मंदिर , चाणक्य प्लेस, पंखा रोड
दोपहर  १ बजे.   भोजन।                                 ४० फ़ीट रोड।  माता चानन देवी हॉस्पिटल के सामने ,
                                                                    C.1. जनकपुरी  नई दिल्ली ५९
मुख्य अतिथि।  श्री रतन लाल भार्गव ( Addl. Supdt.of Police , TONK ( Rajsthan ,
विशिस्ट अतिथि। श्री महेश शर्मा , मेरठ , निदेशक , रिस्तो का संसार , मेरठ
      "                  श्री  डी-आर - शर्मा  उत्तम नगर. दिल्ली 
                                                                             विशेस सहयोगी एवं परामर्श दाता                                                                                 श्री कुञ्ज शर्मा , श्री राहुल जोशी शिवपुरी , श्री c.p . जोशी भोपाल, श्री अनिल शर्मा दमोह ,श्री अशोक कुमार जोशी शिव पूरी , श्री कमलेश कुमार शर्मा जयपुर , श्री लोकेश भार्गव अधिवक्ता ,
श्री कन्हिया लाल शर्मा बछरावा , राय बरेली।  श्री आनंद रावल , श्री सुरेश कुमार , श्री विनोद भार्गव पंजाब ,
श्री महावीर प्रशाद  गगन , श्री सुरेश कुमार शास्त्री , श्री एच। पी। जोशी , श्री ए के जोशी इंजीनियर। ,
श्री कुलदीप डागर , श्री भवानी शंकर जयपुर , श्री वासुदेव जी , श्री गिरीश भार्गव , श्री मुकेश महाराज ,
श्री दलीप जी जोशी , श्री राकेश जी , श्री गौरव घोषिल जयपुर , श्री महेंदर शर्मा उज्जैन , श्री सुनील जोशी
भोपाल , श्री दिनेश जी उज्जैन , श्री पंडित दर्शन जी , श्री दिनेश जी जॉल , श्री महेश जोशी भोपाल ,
श्री अनिल जी , श्री राजेश जी आगरा , श्री अशोक जोशी adv दिल्ली , श्री एल डी जोशी adv .इंदौर ,
श्री दिनेश शर्मा दिल्ली , श्री विजय जी कायस्थ नारनौल , श्री नरेंदर शर्मा ओडिशा , श्री अनुराग शर्मा
उरई ,जालों , श्री सीता राम जी परियाल जयपुर , श्री नीरज कुमार कौशिक बिजनौर , श्री राजेंद्र शर्मा
भोपाल, श्री अजय गौड़ कलिम्पोड दार्जिलिंग , श्रीहरिश जी गांव हर्षाली अहमदाबाद , श्री संतलाल जी
पलवल , श्री योगेश जोशी मुरैना , श्री अरविन्द शर्मा जयपुर , श्री सुरेंदर शर्मा टोंक , राजस्थान ,
श्री राजेंदर भार्गव , भिवानी , श्री विनोद भृगुवंशी , श्री दिनेश शर्मा जयपुर
एवं। . सभी समस्त प्रांतो की कार्यरत संस्थाएं। .( जो प्रांतो की कार्यकारिणी के प्रधान भाग लेंगे विशिस्ट
अतिथि होगे.                                                                       बी:एस :शर्मा { मुख्य संस्थापक } 
                                                                           संयोजक समिति ,भृगुवंशी ,(ज्योतिषी ब्राह्मण )
                                                                            युवक युवती परिचय सम्मेलन दिल्ली।