Friday, June 17, 2016

B.S.Sharma . Bhirguvnshiyo ki suchi -- Gotrkaar - mntrkaar ityaadi .

वैदिक साहित्य में आये हुए भृगुवंशी ब्राह्मणो की सूचि निम्नानुसार  है , जो की मंत्रकार ,गोत्रकार तथा प्रवर थे। :::::::::::
१. अत्र - भरगु पुत्र
२. अधिपति भरगु पुत्र
३. अनंत भागिन -भर्गु  गोत्रकार
४. अनानत प रूच्चेपी -दिवोदास के पुत्र परुच्छेप का
   पुत्र -सुक्क्त दृस्ता
५. अनुमति भर्गु कुल गोत्रकार.
६. अन्त्य (अन्य ) धर्गु पुत्र
७. अन्त्या पण (अन्यायत) भर्गु पुत्र
८. अपीशी ,अपिश्ली ,भर्गु कुल गोत्रकार
९. अप्नवान - च्वयन के पुत्र। इनकी पत्नी
    रूचि थी
१०. अभ्याग्नि एतशयन - भरगुवंशीय इट्स से संबंधित है
अग्नेराने मंत्रो को द्र्स्ट किया था ,जब ये इनका गठन कर
रहे थे , तब पुत्रो में से अभ्यगनि ने आक्रिंके मुख पर हाथ
रख दिया , और कहा की मेरे पिता पागल हो गए है। इस
पर क्रुद्ध होकर अभ्याग्नि एसिशयनो की पापिस्ट होने का
श्राप दिया।
११. अरूप -भरगु गोत्रीय म्नलकार
१२. अध्य्य -भरगु पुत्र
१३. असकृत भरगु गोत्र कर्ता
१४. आपस्तम्ब -कश्यप। ऋषि द्वारा कराये हुए पुत्र कॉमेस्टी यग में आचार्य थे।  इनकी पत्नी का नाम
      अक्षसूचा ,पुत्र का नाम कर्की था।  इनके नाम पर अनेक ग्रंथो का उल्लेख है ,जिनमे बहुत से उपलब्ध है।
१५. आपस्तंत्रि -भरगु कुल गोत्रकार
१६। आपिशली - प्राचीन ,व्याकरणाचार्य थे. इनका नाम प्राशिने ने उल्लेख किया है।
१७. . असतिषेण -परवरकार थे, ऋषि एवं मंत्रकार में से थे।  तपस्या द्वारा सिद्द्धि प्राप्त हुई।  ये शल के पुत्र         एवं सुहोत्र के पौत्र थे।  इनका संबंध शौनक और गुत्श -मद से था।  ऋष्टिषेण के पुत्र थे , इनके वंश
        का देवापि आर्शितशेन ऋग्वेद का मंत्र द्रष्टा था।
१८. आवेद ( आचाज ) गोत्रकार
१९।  आलूकी ऋषि
२०. आश्चयनि - ऋषि    २१, इट -भार्गव - सुक्तद्रष्टा
२२.  इन्द्रोत देवाप  शौनक -यह कुल नाम है।  यज्ञ में पुरोहित का कार्य किया था। जनमेजय कप ब्रह्म
       हत्या पाप से मुक्त करवाया था।  महाभारत में धर्मोपदेशक के रूप में आये है।
२३. उन्नत -द्युतिमान का पुत्र
२४. उपरिमंडल ( परिमंडल ) गोत्रकार।    २५- उभयजात -गोत्रका   २७. ऋचीक मंत्रकार
२९. एकायन  गोत्रकार     ३०. एतश -भरगुकूल की ओरवशाखा से संबंध है।
३१. एलिक  गोत्रकार
३२. ओर्व(  ऋचीक )  ऋषि प्रवर ,मंत्रकार ,इनके तेज से हैयय अंधे हो गए थे।  इनके क्रोध को जल में स्थित
     कर दिया गया , जिसने वडवानल का रूप धारण किया।
३३. जिर्वेय - ऋषि   ३४.  ओशन्स -उशनस् (शुक्र ) के पुत्र   ३५. क्तायनी -गोत्रकार
३६. कपि - गोत्रकार।  ३७. ---कवि  भरगु पुत्र  ३८.  कांचन - चयवन भार्गव का नामांतर
३९. कायनी गोत्रकार  ४०.  कार्डेमायनि ऋषि  ४१. कार्याणि -(पाशिगी-गोत्रकार)
४२. काश्य - मंत्रकार   ४३. काश्यपि - गोत्रकार  ४४.  कुत्स - गोत्रकार  ४५. कूर्म -गात्रस्मद शुक्त द्रष्टा
४६. क्रत्नु भार्गव -मुक्त इष्टा  ४७- कोगाशी ( सकोरा ) गोत्रकार ४८. काउछस्ति -गोत्रकार
४९. कोठभि -अर्थशस्त्रकार कौटिल्य भरगु गोत्रीय थे -गोत्रकार  ५०. कौत्स -गोत्रकार
५१. कौश्पी -- ५२-कौशी   ५३- ऋतू -भरगु पुत्र  ५४. खांडव  ५५- चुभ्य -गोत्रकार ५६.  गावन
५७. गर्मीय   ५८- गार्गापन  ५९. गार्द्धभि -ऋषि   ६०. घाही यण -गोत्रकार
६१. गुत्स्मद - गोत्रकार ,परवरकार , मंत्रकार तथा सूक्तद्र्स्ट  थे - इन्होने तपस्या की , इंद्र के समान
     तेजश्वी शरीर बनाकर  द्युलोक को व्याप्त किया। इंद्र समझ कर धुनि और च्सुदी दैत्यों ने शस्त्र उठाये
     तब इन्होने वास्तविक इंद्र के स्वरूप का परिचय करने के लिए ऋग्वेद का २-१२ शुक्त लिखा।  इंद्र ने
     मौका पाकर दैत्यों को मार डाला और परसन होकर गुत्स्मद को अक्षय तपस्या का वरदान दिया , और
     कहा ,तुम्हारी प्रार्थना से हम प्रश्न है , अत: तुम्हारा नाम गुत्स्मद शोनहोत्र होगा , गुत्स का अर्थ
     प्राण और मद का अर्थ अमां है।  . ६२. गोस्टाइन - गोत्रकार  ६३. ग्राम्या -यनि  - गोत्रकार
६४. चण्ड - भार्गव --- इनका जन्म चयवन मुनि के वंश में हुआ था।  उस समय के विख्यात कर्मकांडी थे
      सर्पो के यज्ञ के समय जनमेजय के यज्ञ में यज्ञवाद वेताओ में श्रेस्ट ब्राह्मण वंड भार्गव हेतु।
६५. चल कुण्डल -गोत्रकार  ६६. चली गोत्रकार  ६७.  धृत्वि गोत्रकार  ६८. चोदरम्सी गोत्रकार
६९. चौक्षी -नोत्रकार  ७०. चयवन -मंत्रकार  ७१. जयदग्नि -मंत्रकार ,प्रवर
७२. जवीन - गोत्रकार  ७३. जवाली गोत्रकार  ७४. जालधि -गोत्रकार ७५.  जिहब्क - गोत्रकार
७६.  जेवतनयायनी गोत्रकार ७७. त्याज्य - भरगु पुत्र  ७८. तिथि  गोत्रकार
७९. त्रिशिरा - त्वष्टा के पुत्र सूक्त दृष्ट्या
८०।  त्वष्टा - शुक्र और गो के पुत्र थे।  यशोधरा ,वेरोचिनी , इनकी पत्नी थी।
८१. दक्ष - भरगु पुत्र  ८२. दाडिन - गोत्रकार ८३. दध्यच (दधचि ,दधीचि ) मंत्रकार
८४. दम - गोत्रकार  ८५. दिवोदास - ऋषि प्रवर। ८६.  देवपति-गोत्रकार
८७.  देवयानी - शुक्राचार्य जी की पुत्री ८८.  दर्शान भार्गव - मन्त्रदस्ट्
८९. देवापि आर्ष्टि शेण -मन्त्रद्रस्ता  ९०. द्युतिमान -भरगुकूल के ख्याति वंश में उतपन पांडुपरन का पुत्र
९१.  दोनयन - गोत्रकार ९२।  दिवगत भार्गव -शाम पठन करने के कारण स्वर्ग को प्राप्त हुए।
९३. धाता -भरगु की पत्नी ख्याति का पुत्र , इनकी पत्नी भेरू , कन्या आयति थी।
९४. नडायन (नवप्रभ) - गोत्रकार ९५।  नभ - गोत्रकार ९६. नाकुली. - गोत्रकार ९७.  नितिन -गोत्रकार
९८. नील - गोत्रकार  ९९. नैतिश्य - गोत्रकार
१००. नेम भार्गव - शुक्त दृष्टया
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१०१. नेक - जिहदु -गोत्रकार १०२. नैकशी -गोत्रकार
१०३.  परशुराम (जामदग्न्य ) चिरंजीवी विष्णु अवतार १०४।  पॄच्छेप देवोदासि -मंत्रकार सूक्त सुकदृष्ट्ता
१०५. पश्वास्य (पथ्यस्व )- मंत्रकार  १०६.  पाण्डोरोची - गोत्रकार
१०७. पिप्लाद - यह अंग्रिशि मंत्रो का प्रयोग करते थे।  अत: आग्रिश कहलाते थे।  इनके पिता दधीचि थे
        देवताओ ने वज्र निर्माण के लिए दधीचि की हड्डिया मांगी , जो उनको दे दी गई।  इनकी माता ने
        पति की इस अवस्था को देखकर अपने गर्भ को निकाल कर पीपल के वृक्ष के निचे रख दिया , व्ही
        इस बालक का पालन पोषण हुआ।  इससे इनका नाम पिप्लाद पद गया।  ये दर्शन के छेत्र में
        अग्रणी थे।
१०८. पिली- गोत्रकार  १०९। पूर्णिमा गतिक  - गोत्रकार
११०. पृथु - मंत्रकार और शुक्त द्र्स्तता।  वेन पुत्र पृथु (वैन्य ) भार्गव वंश से संबंधित थे
१११. प्रथुरश्मि - वृति के पुत्र   ११२.  पीर - गोत्रकार  ११३.  पौलश्य - गोत्रकार
११४. पोष्येण - गोत्रकार  ११५. प्रचेता - मंत्रकार और शुक्त द्रष्टा ११६. प्रत्यूह (प्रत्यह ) गोत्रकार
११७. प्रमव (प्रभव ) - भरगु पुत्र
११८. प्रगति - चयवन के पुत्र।  इनकी पत्नी (धरतली) धृताची थी।  इसके गर्भ से रुरु नामक पुत्र हुआ।
११९. प्रयाग भार्गव - सूक्त द्रष्टा १२०. प्राण (पाण्डु) भरगु ख्याति पुत्र विधाता का पुत्र।  इनकी पत्नी
        पुण्डरीका थी।
१२१. फेनप (फेनब). गोत्रकार  १२२.  बाध्यस्व (व्द्धर्शव ) १२३. बल्कि - गोत्रकार
१२४. वाळवी। गोत्रकार   १२५.. विल्वी - गोत्रकार १२६। वृहद्गिरा - शुक्र कुल में उतपन वरुणी का पुत्र
१२७. वेजमरत - मंत्रकार  १२८. ब्रह्मवान- मंत्रकार  १२९. भागवती - गोत्रकार
१३०.  भार्गव - गोत्रकार  १३१.  भावन - भरगु के पुत्र   १३२.  भुवन - भरगु के पुत्र
१३३।  भूत - एक ब्रह्म ऋषि   १३४।  भरगु - मंत्रकार , गोत्रकार , परवरकार
१३५. भरगुदास - गोत्रकार  १३६- भौनव - भरगु पुत्र १३७. भ्र्स्तकायनी - गोत्रकार
१३८.मंद -(मुंड ) गोत्रकार  १३९।  मटवीगन्ध - गोत्रकार १४०- मथित - गोत्रकार
१४१. मर्क - शुक्र के पुत्र  १४२. मांडव्य - गोत्रकार  १४३ - माण्डुक - गोत्रकार १४४.  मानकायन -गोत्रकार
१४५. माण्डकायनी -माण्डुक का पुत्र  १४६. माण्डके -मंडूक का पुत्र
१४७. मारुत - गोत्र कार ऋषि वर्ग
१४८. मार्कण्डेय - गोत्रकार , इनका पुत्र वेदशिरा था , मूर्धन्या पत्नी थी ,वंशावली में इनकी पत्नी का नाम              धूमपानी का नाम ब्रह्मपुराण में बतलाया गया है।
१४९ - मार्गपथ - गोत्रकार  १५०- मार्गीय - गोत्रकार  १५१.  मालायनी - गोत्रकार
१५२.  मित्रेव - गोत्रकार , मैत्रेय ब्राह्मण तथा metryaani  शाखा के संचालक
१५३. मूर्ध्न - भरगु पुत्र.  १५४. मरकदू - धाता के पुत्र - म्नस्वनी इनकी पत्नी का नाम था
१५५.  मर्ग - (भूत ) गोत्रकार  १५६. मेत्रीय - गोत्रकार  १५७. मौज - गोत्रकार
१५८. मोदगलायन - गोत्रकार  १५९. यज्ञपति - गोत्रकार १६०. यज्ञ पीडायन - गोत्रकार
१६१. यास्क - (यक्सावल) - गोत्रकार  १६२. यागपि - गोत्रकार
१६३.  युन्दाजीत - मंत्रकार  १६४. रंजन - शुक्र वंसज , वारुणी का पुत्र
१६५. दामोद - गोत्रकार
१६६ रुरु - परमती का पुत्र - इनका विवाह स्थूलकेश मुनि की पुत्री  प्रमदवरा से हुआ , प्रमदवरा को सर्प ने
       डस लिया था , तब इसने अपनी आयु देकर उसको जीवित किया।  इनका सर्प जाती से द्वेष दुन्दुम के
       साथ संवाद आदि महाभारत में मिलते है
१६७. रूपी - प्रवर  १६८. देवेश - प्रवर  १६९। . रोकमायनी - गोत्रकार
१७०. रोहिल्यायनी - गोत्रकार ,
१७१ ललाटी , १७२।  लुब्ध , १७३ लोलाक्षी  १७४। लिक्षिण्य  १७५।  लोहवेरिन ( सभी गोत्रकार )
१७६. वजर्षिरस - भरगु पुत्र  १७७. वत्स - भर्गु गोत्री  १७८.  वृतिरिन् - शुक्राचार्य के पुत्र
१७९. वरणम् (विभ) भरगु पुत्र  १८०।  वसु - जन्मदग्नि पुत्र  १८१. वसुद - भरगु पुत्र
१८२. वानयानी - गोत्रकार ,  १८३.  वात्स्य - गोत्रकार  .  १८४. वाह्यान - गोत्रकार
१८५. विद - मंत्रकार एवं गोत्रकार  १८६. विदन्वत् भार्गव - शाम drstta -
१८७. विधाता -भरगु ख्याति पुत्र , इनकी पत्नी नियति थी
१८८.  विरुपाक्ष - गोत्रकार  १८९ - विश्वकर्मा तवस्ता तथा वैरोचनी यशोदा का पुत्र
१९०. १९०.  विस्वरूप - त्वष्टा का पुत्र , देवो का पुरोही , विरोचन का भांजा , असुरो से सम्बन्ध होने पर
        यज्ञ में देवो के सामने असुरो को गुप्त रीती से हमीमार्ग देता था , इंद्र ने अपनी पदवी छीन जाने
        के भय से इसके ३ मस्तक वज्र से काट दिए थे।  इससे विदित होता है की त्रिसिरस और विश्वरूप
        एक होगे.
१९१. विस्ववसु - जन्मदग्नि पुत्र  १९२.  वेद - मंत्रकार  १९३.  विष्णु - गोत्रकार
१९४.  वीतहव्य - गोत्रकार , मंत्रकार , एवं सूक्त दृसत्ता
१९५.  वेदसिरस - मार्कण्डेय के पुत्र इनकी पत्नी का नाम पावरी था.
१९६।   वेन भार्गव - सूक्त द्रष्टा  १९७।  वेकरनी , १९८. वेगयेन  १९९.  बेग्भ्यन्न  २००। वैश्वानरी
          वेहोनरी  २०१, व्याघाज्य ( सभी गोत्रकार )
२०२। वेदभि भार्गव - शुक्त दरिस्टता  २०३. व्य्जय् - भरगु पुत्र  २०४. वैश्रुव -भरगु पुत्र
२०५ ब्याज - भरगु पुत्र  २०६. वेक्श - प्रवर  २०७- वैदर्भी भार्गव = शुक्त डिर्स्टता
२०८।  वैन्य - मंत्रकार एवं गोत्रकार
२०९।  शण्डामर्क - षंड और मर्क ये दो पुत्र पुरषो के नाम है।  दोनों शुक्र के पुत्र थे , ये अशूरो के पुरोहित थे ,
          श्रेस्ट पुरोहित होने का कारण दैत्यों को पराभूत करना देवो के लिए कठिन कार्य था , इसलिए देवो ने
           लालच दिया और सोम के बहाने अपनी और देवो ने कर लिया।  जब यज्ञ शुरू हुआ तब
         संडाम्रक वहा उपस्थित हुए , किन्तु देवो के साथ उनको शोम पान  नही कराया गया और उपहास
         करके निकाल दिया।  शुक्रामंथी गृह लेने का प्रचार शण्डामर्क के लिए हुआ था।
२१०.  शकटाक्ष- गोत्रकार २११.  शाक्टायन - गोत्रकार २१२. शरदिवत्क - गोत्रकार
२१३. शाकल्प - मार्कण्डेय ऋषि का पुत्र था , ऋग्वेद संघिता के संधि नियम बनाने वाले
२१४. शर्कराक्षी - गोत्रकार  २१५।  शार्कराक्ष्य - शार्कराक्षी पुत्र
२१६.  शांगख - गोत्रकार २१७. शलयनि गोत्रकार  २१८.. शिखावरण - गोत्रकार
२१९. शुचि - भरगु पुत्र
२२०. शेनक भार्गव - गोत्रकार, मंत्रकार, तथा शुक्त dirstya
२२१. शोनहोत्र - गुत्स्मद का पैतृक नाम
२२२.  शोकायन जीवंती - गोत्रकार  २२३।  शर्म दागोपी - गोत्रकार
२२३. श्रवा - भरगु पुत्र  २२४ शर्म दगोपी - गोत्रकार
२२५.  श्री लक्ष्मी - भरगु ख्याति की पुत्री।  भगवान विष्णु की पत्नी
२२६. संगालय  २२७।  सनक  २२८.  शंक्त्य  २२९. शय्याणी  २३०. शापि ( सभी गोत्रकार )
२३१. सवन - भरगु पुत्र  २३२।  स्वेशरम - मंत्रकार  २३३.  सुनन - भरगु पुत्र
२३४. शारस्वत - मंत्रकार , वेदविद्या में पारंगत थे , सरस्वती से उतपन दधीचि के पुत्र
२३५.  सुचेतम - वीतहव्य वंशावली में आये हुए गुत्स्मद के पुत्र
२३६. सुन्न  २३७. सुजन्य ( दोनों भरगु पुत्र )
२३८.  सुमति भार्गव - इनको अपने दस हज़ार पूर्व जन्मो की स्मृति थी , अपने पिता को ज्ञान दिया था
२३९.  सुमित्र बयषद् - मंत्र दृसत्ता ऋषि २४०. सुषेण - जन्मदग्नि पुत्र
२४१.  शोकी - गोत्रकार  २४२।  सोमाहुति भार्गव- सूक्त दृसत्ता ऋषि
२४३. शोचरक  २४४।  शोधिक  २४५. सौर  २४६।  सौरी  २४७।  सौह  २४६ स्तनित २४९. स्थपिण्ड
        २५०।  हंसजिव्ह ( सभी गोत्रकार )
२५१. स्वनवात।  शुक्र के वंसज  दियुतिमान के पुत्र थे
२५२. स्थूम्रश्मि - भार्गव - सूक्त डिर्स्टता  २५३।  स्वमूर्ध्न।  - भरगु पुत्र

साभार - भर्गु वंश गाथा।
       




1 comment:

  1. बहुत सुंदर युवक युवती परिचय सम्मेलन हुआ था, कई बन्धुओ को उनके बच्चों के रिश्ते करने मे सुविधा मिली.

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