ब्राह्मण समुदाय :बनाम : उपजातियां
वक़्त के बदलते परिवेश एवं आपसी उठा -पटक, उच्च एवं, निम्न ,इसे वक़्त
की विडंबना कहकर ही संतोष कर लेना होगा की आज :" ब्राह्मण समुदाय " न जाने कितनी ही उपजाति के
रूप में उभर कर सामने आ रहा है , जो समस्त ब्राह्मणो के लिए चिंता का विषय कहा जाये तो कोई अतिस्योक्ति नही। वैसे तो समस्त ब्राह्मण वर्ग ( महर्षि भरगु ) जी की संतान है, परन्तु जैसे जैसे ,इनकी
संख्या बढ़ती गई , इनके ( वट - वृक्ष ) भी बढ़ते गए और सभी ब्राह्मण अलग अलग ऋषियों , महृषीयो के
नमो से जाना जाने लगा, ठीक उसी प्रकार महाऋषियों की ( जयंतिया ) भी मनाई जाती है , जैसे , महर्षि
परशु राम जयंती , महर्षि भरगु जयंती इत्यादि ,इत्यादि।
प्राय : देखा जाता है की कुछ ब्राह्मण वर्ग महर्षि परशु राम जयंती मनाते है
तो कुछ ब्राह्मण वर्ग महर्षि भरगु जयंती मनाते देखे जा सकते है। सबका सोचने का तरीका अलग हो सकता
है , परन्तु यह तो मान कर चलना ही होगा , की सभी ब्राह्मणो के परदादा ( descendent) महर्षि भरगु को
ही माना जाता है।
महर्षि भरगु जी की दो पत्नियों का उल्लेख पाया जाता है , (१) दिव्या ,
(२) पोलुमा , दिव्या पत्नी से महर्षि ( शुक्राचार्य ) एवं पोलुमा से महर्षि च्यवन का जन्म होना बताया
जाता है , तथा दोनों ही पुत्रो का भरगु वंश में प्रमुख स्थान माना जाता है. आगे चलकर इनके वट वृक्ष
अलग अलग हो गए। महर्षि शुक्राचार्य के चार पुत्र हुए , जिनके नाम शंड ,त्वष्टा ,वस्त्र एवं अमरक के
नामो से जाने जाते है, एवं महर्षि च्वयन के अप्नवान , परमती एवं दधीचि नाम के पुत्र विख्यात हुए।
च्वयन के वट वृक्ष में महर्षि जन्मदग्नि हुए , जिनकी पत्नी रेणुका जी से महर्षि परशुराम का जन्म हुआ
जो जगविख्यात हुए , जिन्होंने छत्रियो को मैदान में 21bar हराकर महारथ हासिल की। , शुक्राचार्य जी के
वट वृक्ष में जो ऋषि हुए जैसे शंड , शंकराचार्य ,शांडिल्य एवं डामराचार्य जिन्हे डंक मुनि , डंक नाथ के
नामो से भी जाना जाता है। महऋषि शुक्राचार्य जिन्होंने देवो के देव महादेव की तपश्या करके मृत संजीवनी
बूटी ) हासिल की जो जग विख्यात है। उन्ही के वटवृक्ष में वैद (सुषेण ) का नाम आता है , जोकि रावण के
दरबार में प्रशिद थे , जिन्होंने राम रावण युद्ध में लक्ष्मण जी को मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी से ही
लक्ष्मण जी को जीवन दान दिया था। वास्तव में मह्रिषी शुक्राचार्य एवं च्वयन दोनों का ही वट वृक्ष
प्रमुख माना जाता है ,, एवं दोनों ही भरगु वंसज कहे जाते है।
ब्राह्मणो की वैसे तो अनेक उपजातिया है , जिनमे से एक उपजाति ,
( डाकोत , जोशी ) उपजाति भी पाई जाती है , जो महर्षि भरगु जयंती मनाते है , तथा कुछ ब्राह्मण
परशुराम जयंती भी मनाते है। ( डाकोत , जोशी ) जाती का शुक्राचार्य वंसज एवं महर्षि (डक ) की
संतान बताते है. . उनके परदादा मह्रिषी भरगु कहे जाते है।
देखा जाये तो मह्रिषी शुक्राचार्य जी की उपलब्धि भी कम नही है , परन्तु
उनकी जयंती नही मनाई जाती ,शायद इसलिए की उन्हें आकाश में शुक्र तारे के रूप में प्रमुख स्थान
मिला हुआ है। वैसे शुक्राचार्य जी के वटवृक्ष में और भी कई ब्राह्मण वर्ग अपने आपको मानते है , जैसे
( विश्वकर्मा) ब्राह्मण जिन्हे पांचाल भी कहा जाता है। भरगु जयंती का पौराणिक प्रमाण तो अभी
कहि नही मिल पाया ,परन्तु हिन्दू ब्लॉग के अॉथर के अनुसार भरगु जयंती के तारीख वैसाख माह की
तृतीया शुक्ल पक्ष बताते है , जबकि डाकोत , जोशी ब्राह्मण भरगु जयंती बसंत पंचमी को मनाते है.
मह्रिषी शुक्राचार्य जिन्होंने घोर तपस्या करके " मृत संजीवनी बूटी हासिल की ,जिनका जन्म ,शुक्रवार ,
श्रवण सुधा अष्टमी स्वाति नक्छत्र में होना बताया गया है ,तथा महर्षि शुक्राचार्य जी को ही भार्गव
नाम से जाना जाता है , क्यों न हम महर्षि शुक्राचार्य जी को भी उनके जन्म दिन पर ,उनकी जयंती मना
कर याद किया जाये। जिनका नाम " मृत संजीवनी बूटी से जुड़ा हुआ है।
( B.S.Sharma)
Delhi
वक़्त के बदलते परिवेश एवं आपसी उठा -पटक, उच्च एवं, निम्न ,इसे वक़्त
की विडंबना कहकर ही संतोष कर लेना होगा की आज :" ब्राह्मण समुदाय " न जाने कितनी ही उपजाति के
रूप में उभर कर सामने आ रहा है , जो समस्त ब्राह्मणो के लिए चिंता का विषय कहा जाये तो कोई अतिस्योक्ति नही। वैसे तो समस्त ब्राह्मण वर्ग ( महर्षि भरगु ) जी की संतान है, परन्तु जैसे जैसे ,इनकी
संख्या बढ़ती गई , इनके ( वट - वृक्ष ) भी बढ़ते गए और सभी ब्राह्मण अलग अलग ऋषियों , महृषीयो के
नमो से जाना जाने लगा, ठीक उसी प्रकार महाऋषियों की ( जयंतिया ) भी मनाई जाती है , जैसे , महर्षि
परशु राम जयंती , महर्षि भरगु जयंती इत्यादि ,इत्यादि।
प्राय : देखा जाता है की कुछ ब्राह्मण वर्ग महर्षि परशु राम जयंती मनाते है
तो कुछ ब्राह्मण वर्ग महर्षि भरगु जयंती मनाते देखे जा सकते है। सबका सोचने का तरीका अलग हो सकता
है , परन्तु यह तो मान कर चलना ही होगा , की सभी ब्राह्मणो के परदादा ( descendent) महर्षि भरगु को
ही माना जाता है।
महर्षि भरगु जी की दो पत्नियों का उल्लेख पाया जाता है , (१) दिव्या ,
(२) पोलुमा , दिव्या पत्नी से महर्षि ( शुक्राचार्य ) एवं पोलुमा से महर्षि च्यवन का जन्म होना बताया
जाता है , तथा दोनों ही पुत्रो का भरगु वंश में प्रमुख स्थान माना जाता है. आगे चलकर इनके वट वृक्ष
अलग अलग हो गए। महर्षि शुक्राचार्य के चार पुत्र हुए , जिनके नाम शंड ,त्वष्टा ,वस्त्र एवं अमरक के
नामो से जाने जाते है, एवं महर्षि च्वयन के अप्नवान , परमती एवं दधीचि नाम के पुत्र विख्यात हुए।
च्वयन के वट वृक्ष में महर्षि जन्मदग्नि हुए , जिनकी पत्नी रेणुका जी से महर्षि परशुराम का जन्म हुआ
जो जगविख्यात हुए , जिन्होंने छत्रियो को मैदान में 21bar हराकर महारथ हासिल की। , शुक्राचार्य जी के
वट वृक्ष में जो ऋषि हुए जैसे शंड , शंकराचार्य ,शांडिल्य एवं डामराचार्य जिन्हे डंक मुनि , डंक नाथ के
नामो से भी जाना जाता है। महऋषि शुक्राचार्य जिन्होंने देवो के देव महादेव की तपश्या करके मृत संजीवनी
बूटी ) हासिल की जो जग विख्यात है। उन्ही के वटवृक्ष में वैद (सुषेण ) का नाम आता है , जोकि रावण के
दरबार में प्रशिद थे , जिन्होंने राम रावण युद्ध में लक्ष्मण जी को मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी से ही
लक्ष्मण जी को जीवन दान दिया था। वास्तव में मह्रिषी शुक्राचार्य एवं च्वयन दोनों का ही वट वृक्ष
प्रमुख माना जाता है ,, एवं दोनों ही भरगु वंसज कहे जाते है।
ब्राह्मणो की वैसे तो अनेक उपजातिया है , जिनमे से एक उपजाति ,
( डाकोत , जोशी ) उपजाति भी पाई जाती है , जो महर्षि भरगु जयंती मनाते है , तथा कुछ ब्राह्मण
परशुराम जयंती भी मनाते है। ( डाकोत , जोशी ) जाती का शुक्राचार्य वंसज एवं महर्षि (डक ) की
संतान बताते है. . उनके परदादा मह्रिषी भरगु कहे जाते है।
देखा जाये तो मह्रिषी शुक्राचार्य जी की उपलब्धि भी कम नही है , परन्तु
उनकी जयंती नही मनाई जाती ,शायद इसलिए की उन्हें आकाश में शुक्र तारे के रूप में प्रमुख स्थान
मिला हुआ है। वैसे शुक्राचार्य जी के वटवृक्ष में और भी कई ब्राह्मण वर्ग अपने आपको मानते है , जैसे
( विश्वकर्मा) ब्राह्मण जिन्हे पांचाल भी कहा जाता है। भरगु जयंती का पौराणिक प्रमाण तो अभी
कहि नही मिल पाया ,परन्तु हिन्दू ब्लॉग के अॉथर के अनुसार भरगु जयंती के तारीख वैसाख माह की
तृतीया शुक्ल पक्ष बताते है , जबकि डाकोत , जोशी ब्राह्मण भरगु जयंती बसंत पंचमी को मनाते है.
मह्रिषी शुक्राचार्य जिन्होंने घोर तपस्या करके " मृत संजीवनी बूटी हासिल की ,जिनका जन्म ,शुक्रवार ,
श्रवण सुधा अष्टमी स्वाति नक्छत्र में होना बताया गया है ,तथा महर्षि शुक्राचार्य जी को ही भार्गव
नाम से जाना जाता है , क्यों न हम महर्षि शुक्राचार्य जी को भी उनके जन्म दिन पर ,उनकी जयंती मना
कर याद किया जाये। जिनका नाम " मृत संजीवनी बूटी से जुड़ा हुआ है।
( B.S.Sharma)
Delhi
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