भिक्षावृति - अभिशाप या श्राप
किसी जमाने में भारतवर्ष को सोने की चिड़िया कहा जाता था। देश का
राजा प्रजा का पालनहार कहा जाता था , न कोई राजा था न कोई रंक , न भीख थी , न कोई
भिखारी , हाँ सुदामा जैसे ब्राह्मण जरूर थे , जिन्हे राजा लोग मन माना दान देकर विदा
करते थे।
वर्तमान में देखा जाये तो हर प्रान्त के शहर के गांव गली , चौराहो पर
भिखारी देखने को मिलेंगे। कालान्तर में दान लेने का काम केवल ब्राह्मण का होता था , जो
आज भी है , परन्तु वर्तमान में यह पता करना कठिन काम है की दान लेने वाला कोई ब्राह्मण
ही है या किसी और वर्ग से है।
भिखारियों ने तो " काम " करने का रंग - ढंग ही बदल दिया है ,कोई
गाना गाकर , कोई ढपली बजाकर , कोई शनि देव की प्रतिमा लेकर , कोई राहु केतु के नाम
इत्यादि , इत्यादि तरीके से अपना कारोबार भिक्षावृति के रूप में करते देखे गए है। इनमे
अमीर , गरीब ,टैक्स पेयर सभी किस्म के हो सकते है। परन्तु उनके हाथो की लकीरे भिक्षावृति
कहकर उनका मनोबल बढ़ाती है , किसी ने सच ही कहा है ,::::
हाथ की लकीरे भी कितनी अजीब है ,
रोने भी नही देती , सोने भी नही देती ,
कमबख्त मुठी में है , लेकिन काबू नही "" :::
कहा जाता है की शनि देव के नाम पर भिक्षा लेने वाले लोग " ज्योतिष "
का ज्ञान भी रखते है, परन्तु फिर भी वे "भिक्षावृति " का पीछा नही छोड़ते , कहा जाता है
इन लोगो को लक्ष्मी जी का श्राप लगा हुआ है , इन सब बातो को किवदंतियों के रूप में
लिया जाये या लोकोक्ति ::: जो इस प्रकार है ;
::: जैसा खाया अन्न वैसा हुआ मंन ,,,,
सरकार प्रयासरत है की भिक्षावृति बंद हो , ठीक उसी प्रकार सामाजिक संस्थाए
( NGO) भी इन लोगो के वेलफेयर के लिए प्रयत्नशील है , इनके लिए ( begger home )
awas suvidha , काम धंदे को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। हा इतना जरूर है की
" शनि दान " ग्रहण करने वाले लोग , वर्ग , आत्मग्लानि के शिकार तो है ,परन्तु
भिक्षावृति क्यों नही छोड़ पाते , यह कहना मुस्किल है।
भाइयो भिक्षावृति कैसे बंद हो इसके लिए आपका सहयोग , आपके
सुझाव मिलते चाहिए , कभी तो कोई ऐसा सुझाव मिलेगा ही जिससे की कुछ हल निकल पाये।
( B.S.Sharma )
Delhi .
किसी जमाने में भारतवर्ष को सोने की चिड़िया कहा जाता था। देश का
राजा प्रजा का पालनहार कहा जाता था , न कोई राजा था न कोई रंक , न भीख थी , न कोई
भिखारी , हाँ सुदामा जैसे ब्राह्मण जरूर थे , जिन्हे राजा लोग मन माना दान देकर विदा
करते थे।
वर्तमान में देखा जाये तो हर प्रान्त के शहर के गांव गली , चौराहो पर
भिखारी देखने को मिलेंगे। कालान्तर में दान लेने का काम केवल ब्राह्मण का होता था , जो
आज भी है , परन्तु वर्तमान में यह पता करना कठिन काम है की दान लेने वाला कोई ब्राह्मण
ही है या किसी और वर्ग से है।
भिखारियों ने तो " काम " करने का रंग - ढंग ही बदल दिया है ,कोई
गाना गाकर , कोई ढपली बजाकर , कोई शनि देव की प्रतिमा लेकर , कोई राहु केतु के नाम
इत्यादि , इत्यादि तरीके से अपना कारोबार भिक्षावृति के रूप में करते देखे गए है। इनमे
अमीर , गरीब ,टैक्स पेयर सभी किस्म के हो सकते है। परन्तु उनके हाथो की लकीरे भिक्षावृति
कहकर उनका मनोबल बढ़ाती है , किसी ने सच ही कहा है ,::::
हाथ की लकीरे भी कितनी अजीब है ,
रोने भी नही देती , सोने भी नही देती ,
कमबख्त मुठी में है , लेकिन काबू नही "" :::
कहा जाता है की शनि देव के नाम पर भिक्षा लेने वाले लोग " ज्योतिष "
का ज्ञान भी रखते है, परन्तु फिर भी वे "भिक्षावृति " का पीछा नही छोड़ते , कहा जाता है
इन लोगो को लक्ष्मी जी का श्राप लगा हुआ है , इन सब बातो को किवदंतियों के रूप में
लिया जाये या लोकोक्ति ::: जो इस प्रकार है ;
::: जैसा खाया अन्न वैसा हुआ मंन ,,,,
सरकार प्रयासरत है की भिक्षावृति बंद हो , ठीक उसी प्रकार सामाजिक संस्थाए
( NGO) भी इन लोगो के वेलफेयर के लिए प्रयत्नशील है , इनके लिए ( begger home )
awas suvidha , काम धंदे को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। हा इतना जरूर है की
" शनि दान " ग्रहण करने वाले लोग , वर्ग , आत्मग्लानि के शिकार तो है ,परन्तु
भिक्षावृति क्यों नही छोड़ पाते , यह कहना मुस्किल है।
भाइयो भिक्षावृति कैसे बंद हो इसके लिए आपका सहयोग , आपके
सुझाव मिलते चाहिए , कभी तो कोई ऐसा सुझाव मिलेगा ही जिससे की कुछ हल निकल पाये।
( B.S.Sharma )
Delhi .
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