9th July,2014....
Delhi........
B.S.Sharma......
Delhi........
B.S.Sharma......
(भृगुवंशी समाज का उत्थान )
वर्तमान युग में (खासकर शहरोँ )में जहां जहां लोग बाहर से आकर बसें हों किसी की
जाति का आभास करना बड़ी टेढ़ी खीर हो गया है। शहर में आकर कोई शर्मा तो कोई वर्मा ,कोई
जोशी तो कोई मिश्रा ,तरह तरह के नामों से जाने जाते है । पिछले कुछ दसको से भार्गव लगाने का चलन भी बढ़ता जा रहा है ,जिन्हे भर्गु वंसज खा जाता है।
जाती -पातीं की बातें मुद्तो से चली आ रही है ,क्योकि सरकार के पास भी इस तरह
का कोई आकड़ा नहीँ ,आकड़ा है तो केवल उस समय का जब सर्वे किया जाता है ,वहां प्राय : देखा
गया है की लोग शर्मा वर्मा इत्यादि इत्यादि ही लिखवा देते है और वो ही उनकी जाती बन जाती है।
आपने सुना भी होगा ,देखा भी होगा की दिल्ली ,हरयाणा,राजस्थान,उतरप्रदेश
व पंजाब में शनिवार के दिन "डकोत ब्राह्मण " शनि का दान ग्रहण करते नजर आये होंगे। बड़े बड़े
शहरों के चौराहो व फुटपाथों पर शनि देव की मूर्ति रखीं देखी होगी , क्या आप मानते है की वो दान
लेने वाले सभी डाकोत ब्राह्मण ही है। ऐसा बिलकुल नही है ,आजकल तो दूसरी जाती के लोगो ने भी
यह धंधा बना लिया है अर्थात दूसरी जाती के लोग भी शनि का दान ग्रहण करते है। ज्यादातर डकोत
ब्राह्मण तो आत्मग्लानि के शिकार बन चुके है और कुछ डकोत ब्राह्मणो ने अपना छोटा बड़ा धंधा कर लिया है ,कुछ अपनी नौकरी वगैरा से संतुस्ट है ,अत; वे लोग तो शनि का दान ग्रहण करते ही नही।
कुछ को (जो अपना व्यवशाय या नौकरी ) करते है कह ही नही सकता की ये लोग डकोत है या होंगे
क्यों की वक़्त के साथ उनका खान पान ,रहन सहन सब कुछ तो बदल चुका है। भारतवर्ष में अनगिनत छोटे बड़े शनि मंदिर है। उन शनि मंदिरो में केवल दस
फीसदी ही डकोत ब्राह्मण दान लेने वाले कहे जा सकते है बाकी तो ९० % दूसरे लोग ही देखे जा सकते है
क्यों की सभी शनि मंदिर डकोत ब्राह्मणो के नहीं है.,या यह कह सकते है की सभी शनि मंदिरो में डकोत
ब्राह्मण नही होते। अतः यह मानना कीशनि दान डाकोत ब्राह्मण ही ग्रहण करते है ऐसा बिलकुल भी
नही है।
इंशान की (Pr ogress)के साथ साथ उसके रीती रिवाज व सम्बन्धो पर भी असर
पड़ता है , बदलाव आता हे। वर्तमान में डकोत ब्राह्मणो के बच्चों ने पढ़ लिख कर क़ाबलियत हासिल
की है ,उन्हें दान दिक्षणा से चीड़ सी होती है ,उन्हें पता ही नहीं की डकोत जाति क्या होती है उन्हें
जाति पाति से कोई गहरा लगाव भी नही है। बहुत से बच्चों के सम्बन्ध भी दूसरी जाति में होने लगे है
दूसरी जाति के लोग भी सम्बन्ध करने में कोई हिचकिचाहट महसूस नही करते ,क्योकि सभी एक दूसरे
से हिलमिल से गए है। होना भी चाहिए ? जो हो रहा है वो भी अच्छा है , जो आगे होगा वह भी अच्छा ही
होगा। इतना जरूर है की एक दिन "डकोत ब्राह्मण "लुप्त के कगार पर होगे ,ऐसा नजर आ रहा है।
शायद , इसी में भृगुवंशी समाज का उत्थान छिपा हो :::::::::::::::::::
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