Bhirguvanshi 4th June,2014.Delhi,
" घूमता दर्पण ""
B.s.sharma.
कुछ लोग जमाने में बदलते हुए देखे ,
कुछ लोग जमाने को बदले हुए देखे,
हम क्या थे गर आज हम ये सोचे ,
तो सचाई से डरना होगा यारों ,
माना की अतीत को हम झुटला नही सकते,
मगर जो आज हो रहा है उसे भी गले लगा नही सकते ,
अतीत की गलियों में हमनें प्यार की रोशनी देखी ,
आज भाई भाई के सामने खंजर लिए खड़ा है यारों ,
ये माना की हम में से कुछ ने धन सम्पदा पाई है ,
फिर क्यूँ हम एक दूजे से बिछुड़ने यारों ,
अतीत की डगर में मन मर्यादा और देखा/सुना भाईचारा,
आज अपने ही अपनों की पगड़ी खिचते यारों ,
देखना है तो आज छिपा हुआ हर इंशा का चेहरा देखो,
जहां दोस्ती में भी दुश्मनी का असर है यारों ,
आने वाली हर शाम रंगीन मिजाजे होंगी ,
सुबह आने की इंतजार में ,चीखें और बेबसी की,
कहानी सुनोगे यारों ,
वक़्त है हमको अभी से सम्भलना होगा ,
सुबह होने की हर भोर की नजाकत को समझना होगा, यारों। :::::::::::::::::::
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