5th June,2014. Delhi.
" मेरी कविताए"
B.S.Sharma
"
" पथिक "
पथिक एक घर से निकला था ,
प्यार के कुछ कुछ बीज लेकर ,
दिल में कुछ अरमां लियें ,
यह सोच कर की ,समाज के चमन को ,
महका देंगे ,एक संगठन बना देंगे,
और मिलकर एक आशिया बनाएंगे ,
प्यार ,प्रेम और भाईचारे की ,
पौध एक लगायेंगे ,
आगे बढ़ा तो कुछ और ही नजर आया,
चमन को निंदको और निन्दाओं के जाल से घिरा पाया ,
हिमते ,हिमाती ,आगे बढ़ो ,
दिल से ये आवाज आई ,
कुछ ही कदम आगे बढ़े की ,
इर्षालुओ ने ली अंगड़ाई ,
बस फिर क्या था ,ईर्ष्या व निन्दाओं से ,
रास्ता जाम हो गया ,
जो आज तक होता आया था ,वो ही काम हो गया ,
पथिक ? बढ़ता ही रहा ,
तमन्ना थी कुछ कर दिखाने की ,
हटेंगे नही पीछे ,सह लेंगे चोटे जमाने की।
मगर जब अपनों को ही ,
ईर्षा की आग में जलता हुआ पाया ,
पथिक कुछ छन सोच कर यूँ मुस्कराया ,
दिल के अरमां दिल मेँ रह गए,
और बुद्धु बनकर "चमन" में बैठ गए। ...................
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" मेरी कविताए"
B.S.Sharma
"
" पथिक "
पथिक एक घर से निकला था ,
प्यार के कुछ कुछ बीज लेकर ,
दिल में कुछ अरमां लियें ,
यह सोच कर की ,समाज के चमन को ,
महका देंगे ,एक संगठन बना देंगे,
और मिलकर एक आशिया बनाएंगे ,
प्यार ,प्रेम और भाईचारे की ,
पौध एक लगायेंगे ,
आगे बढ़ा तो कुछ और ही नजर आया,
चमन को निंदको और निन्दाओं के जाल से घिरा पाया ,
हिमते ,हिमाती ,आगे बढ़ो ,
दिल से ये आवाज आई ,
कुछ ही कदम आगे बढ़े की ,
इर्षालुओ ने ली अंगड़ाई ,
बस फिर क्या था ,ईर्ष्या व निन्दाओं से ,
रास्ता जाम हो गया ,
जो आज तक होता आया था ,वो ही काम हो गया ,
पथिक ? बढ़ता ही रहा ,
तमन्ना थी कुछ कर दिखाने की ,
हटेंगे नही पीछे ,सह लेंगे चोटे जमाने की।
मगर जब अपनों को ही ,
ईर्षा की आग में जलता हुआ पाया ,
पथिक कुछ छन सोच कर यूँ मुस्कराया ,
दिल के अरमां दिल मेँ रह गए,
और बुद्धु बनकर "चमन" में बैठ गए। ...................
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