" सूर्यपुत्र शनिदेव जी की जन्मगाथा "
हमारे दैनिक जीवन में नवग्रहों में शक्तिशाली कहे जाने वाले सूर्यपुत्र शनिदेव का काफी
महत्व है। वैसे शनि देव जी शोर जगत के नव ग्रहो में सातवे गृह है, जिसे फलित ज्योतिष में अशुभ माना जाता है। शनिदेव जी की उत्यत्ती के संदर्भ में अलग अलग कथाओ का वर्णन मिलता है। स्कन्ध पुराण के कांशी खंड में शनि देव जी की उतप्ति इस प्रकार बताई गई है। जो आपके सामने प्रस्तुत है।
सूर्य देवता का विवाह दक्ष कन्या के साथ हुआ , जिसका नाम संज्ञा था। दक्ष कन्या देवो के देव महादेव की बहुत ही तपस्या करती थी। सूर्य देव में अधिक तेज होने के कारण संज्ञा तेज सहन नही कर पाती थी , इसलिए वह चाहती थी की उसके तेज में बढ़ोतरी हो जिससे की वह अपने पति सूर्यदेव का तेज सहन
कर सके। सूर्यदेव जी की पत्नी संज्ञा के गर्भ से तीन संतानो का जन्म हुआ। जिनके नाम इस प्रकार है।
१. वैवस्वत मनु २. यमराज ३. यमुना . संज्ञा अपने बच्चो से बहुत प्यार करती थी ,परन्तु सूर्य देव जी का तेज सहन नही कर पाती थी , जिसके कारण संज्ञा खिन्न ,परेशान रहती थी ,लेकिन वह पतिव्रता नारी का धर्म निभाना भली भांति जानती थी। एक दिन संज्ञा ने सोचा की वह अपने पति से अलग रहकर भगवान की तपश्या करके अपने आपको इस काबिल बनाऊ की वह सूर्य के तेज सहन कर सके। संज्ञा ने फैशला किया की वह अपनी जैसी एक संज्ञा बनाएगी जो बच्चो का पालन पोषण करेगी और वह कहि दूर जाकर भगवन की तपस्या करेगी। इस तरह से संज्ञा ने काफी सोच विचार के बाद अपने तपोबल से उसके जैसी ही दिखने वाली
एक संज्ञा बना दी जिसका नाम "शुवर्णा ' रखा। जो संज्ञा की छाया के रूप में जानी गई। छाया को अपने बच्चो की जिम्मेवारी सौपते हुए कहा की आज से तुम नारी धर्म मेरे स्थान पर निभाओगी और बच्चो की परवरिश
करोगी। इस प्रकार का छाया से वचन लेकर संज्ञा अपने पिता के घर पर आ गई। परन्तु जब उसके पिता को
इन सभी बातो का आभाष हुआ तो उन्होंने संज्ञा को अपने पति के घर वापिश जाने के लिए कहा। संज्ञा पिता की बाते सुनकर चिंता मग्न हो गई ,उसके मन में यह विचार आया की अब छाया का क्या होगा। काफी सोच विचार करने के बाद संज्ञा ने फैसला किया की वह कहि जंगल में एकांत में जाकर तपस्या करेगी और वह अपने
को इस काबिल बनाएगी की अपने पति के तेज का सामना कर सके। इस प्रकार संज्ञा दृढ़ निश्चय के साथ
भारत के उत्तर में कुरुक्छेत्र के पास जांगला नामक बन में चली गई ,अपनी खूबसूरती एवं योवन को बचाने के
लिए उसने घोड़ी का रूप धारण किया ताकि कोई उसे पहचान न पाये और वह जंगल बियाबान में तपस्या में
लीन हो गई। उधर सूर्य और छाया के मिलन से तीन बच्चो का जन्म हुआ जिनके नाम १. मनु २. शनिदेव
३. पुत्री श्रद्धा। जिसे तपती भी कहा जाता है। :::::::::
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शनिदेव महाराज के जन्म की दूसरी कथा। :::::::
दूसरी कथा के अनुसार शनिदेव महाराज का जन्म महऋषि कश्यप के अभिभावकत्व में कश्यप यग से
हुआ जब शनि देव छाया के गर्भ में थे तो शिव भगतनी छाया तपश्या में इतनी संलग्न थी की उसे खाने पिने का भी होश नही रहता था , हर घड़ी हर पल वह भगवान शिव को अपने मन से ओझल नही कर पाती थी ,भूखे
प्यासे तपस्या में लीन ही रहती थी। उसने इतनी तपस्या की क़ि शनि देव का गर्भ में ही रंग काला हो गया।
क्योकि उसे धुप गर्मी प्याश की भी कोई परवाह न की। जब शनि देव भगवान का जन्म हुआ तो सूर्य देव शनिदेव जी का काला रंग देख कर हैरान हो गए। इस पर उनको अपनी पत्नी छाया पर शक हुआ , और यह कह कर छाया का अपमान कर डाला की वह मेरा बेटा नही है। इस घटना पर छाया एवं उनके पुत्र शनि देव को बहुत दुःख हुआ ,गर्भ में ही शनि देव भगवान को अपनी माता की तपश्या का बहुत बल मिला। जब उन्होंने देखा की उनके कारण उनकी माता का अपमान हो रहा है तो उनको सहन नही हो सका। , शनिदेव जी ने अपने पिता की और जब क्रूर दृष्टि से देखा तो पिता की पूरी देह का रंग क्लश्वा हो गया। सूर्यदेव के रथ में जुड़े घोड़े आगे बढ़ने बंद हो गए ,सूर्यदेव असमंज में पड़ गए और उन्होंने भगवान शिव को याद किया। शिव भगवन ने
सूर्यदेव को बताया की उसने अपनी पत्नी एवं पुत्र का अपमान किया है ,जिसके कारण यह सब हुआ। शिव जी ने
उनको सलाह दी की आपस में सुलह करके छमा याचना कर लो। सूर्य देव भगवान ने अपनी गलती का अहसास किया तब सूर्यदेव जी के रथ के घोड़ो को आगे बढ़ने की गति मिल पाई। कहा जाता है की तभी से पिता और पुत्र में वैमनष्य चला आ रहा है अर्थात शनिदेव भगवन पिता के विद्रोही ,शिव के भग्त एवं माता के प्रिय बताये बन गए।
लोगो की ऐसी मान्यता है की सूर्यमाला में जो शनि है व्ही शनिदेव का प्रतीक है।
या यु कहे की यह एक वैदिक संकल्पना है। वैसे मनुष्य के जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक शनिदेव जी का प्रभुत्व माना गया है। ज्योतिष फलादेश के अनुसार बताया गया है की जन्म के समय जिसका शनि प्रबल है , उसमे आयरन की कमी नही पाई जाती , जहा आयरन की कमी नही होगी वहा ऊर्जा का स्त्रोत काफी मात्रा में पाया जाता है।
( B.S.Sharma )
Delhi.
हमारे दैनिक जीवन में नवग्रहों में शक्तिशाली कहे जाने वाले सूर्यपुत्र शनिदेव का काफी
महत्व है। वैसे शनि देव जी शोर जगत के नव ग्रहो में सातवे गृह है, जिसे फलित ज्योतिष में अशुभ माना जाता है। शनिदेव जी की उत्यत्ती के संदर्भ में अलग अलग कथाओ का वर्णन मिलता है। स्कन्ध पुराण के कांशी खंड में शनि देव जी की उतप्ति इस प्रकार बताई गई है। जो आपके सामने प्रस्तुत है।
सूर्य देवता का विवाह दक्ष कन्या के साथ हुआ , जिसका नाम संज्ञा था। दक्ष कन्या देवो के देव महादेव की बहुत ही तपस्या करती थी। सूर्य देव में अधिक तेज होने के कारण संज्ञा तेज सहन नही कर पाती थी , इसलिए वह चाहती थी की उसके तेज में बढ़ोतरी हो जिससे की वह अपने पति सूर्यदेव का तेज सहन
कर सके। सूर्यदेव जी की पत्नी संज्ञा के गर्भ से तीन संतानो का जन्म हुआ। जिनके नाम इस प्रकार है।
१. वैवस्वत मनु २. यमराज ३. यमुना . संज्ञा अपने बच्चो से बहुत प्यार करती थी ,परन्तु सूर्य देव जी का तेज सहन नही कर पाती थी , जिसके कारण संज्ञा खिन्न ,परेशान रहती थी ,लेकिन वह पतिव्रता नारी का धर्म निभाना भली भांति जानती थी। एक दिन संज्ञा ने सोचा की वह अपने पति से अलग रहकर भगवान की तपश्या करके अपने आपको इस काबिल बनाऊ की वह सूर्य के तेज सहन कर सके। संज्ञा ने फैशला किया की वह अपनी जैसी एक संज्ञा बनाएगी जो बच्चो का पालन पोषण करेगी और वह कहि दूर जाकर भगवन की तपस्या करेगी। इस तरह से संज्ञा ने काफी सोच विचार के बाद अपने तपोबल से उसके जैसी ही दिखने वाली
एक संज्ञा बना दी जिसका नाम "शुवर्णा ' रखा। जो संज्ञा की छाया के रूप में जानी गई। छाया को अपने बच्चो की जिम्मेवारी सौपते हुए कहा की आज से तुम नारी धर्म मेरे स्थान पर निभाओगी और बच्चो की परवरिश
करोगी। इस प्रकार का छाया से वचन लेकर संज्ञा अपने पिता के घर पर आ गई। परन्तु जब उसके पिता को
इन सभी बातो का आभाष हुआ तो उन्होंने संज्ञा को अपने पति के घर वापिश जाने के लिए कहा। संज्ञा पिता की बाते सुनकर चिंता मग्न हो गई ,उसके मन में यह विचार आया की अब छाया का क्या होगा। काफी सोच विचार करने के बाद संज्ञा ने फैसला किया की वह कहि जंगल में एकांत में जाकर तपस्या करेगी और वह अपने
को इस काबिल बनाएगी की अपने पति के तेज का सामना कर सके। इस प्रकार संज्ञा दृढ़ निश्चय के साथ
भारत के उत्तर में कुरुक्छेत्र के पास जांगला नामक बन में चली गई ,अपनी खूबसूरती एवं योवन को बचाने के
लिए उसने घोड़ी का रूप धारण किया ताकि कोई उसे पहचान न पाये और वह जंगल बियाबान में तपस्या में
लीन हो गई। उधर सूर्य और छाया के मिलन से तीन बच्चो का जन्म हुआ जिनके नाम १. मनु २. शनिदेव
३. पुत्री श्रद्धा। जिसे तपती भी कहा जाता है। :::::::::
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शनिदेव महाराज के जन्म की दूसरी कथा। :::::::
दूसरी कथा के अनुसार शनिदेव महाराज का जन्म महऋषि कश्यप के अभिभावकत्व में कश्यप यग से
हुआ जब शनि देव छाया के गर्भ में थे तो शिव भगतनी छाया तपश्या में इतनी संलग्न थी की उसे खाने पिने का भी होश नही रहता था , हर घड़ी हर पल वह भगवान शिव को अपने मन से ओझल नही कर पाती थी ,भूखे
प्यासे तपस्या में लीन ही रहती थी। उसने इतनी तपस्या की क़ि शनि देव का गर्भ में ही रंग काला हो गया।
क्योकि उसे धुप गर्मी प्याश की भी कोई परवाह न की। जब शनि देव भगवान का जन्म हुआ तो सूर्य देव शनिदेव जी का काला रंग देख कर हैरान हो गए। इस पर उनको अपनी पत्नी छाया पर शक हुआ , और यह कह कर छाया का अपमान कर डाला की वह मेरा बेटा नही है। इस घटना पर छाया एवं उनके पुत्र शनि देव को बहुत दुःख हुआ ,गर्भ में ही शनि देव भगवान को अपनी माता की तपश्या का बहुत बल मिला। जब उन्होंने देखा की उनके कारण उनकी माता का अपमान हो रहा है तो उनको सहन नही हो सका। , शनिदेव जी ने अपने पिता की और जब क्रूर दृष्टि से देखा तो पिता की पूरी देह का रंग क्लश्वा हो गया। सूर्यदेव के रथ में जुड़े घोड़े आगे बढ़ने बंद हो गए ,सूर्यदेव असमंज में पड़ गए और उन्होंने भगवान शिव को याद किया। शिव भगवन ने
सूर्यदेव को बताया की उसने अपनी पत्नी एवं पुत्र का अपमान किया है ,जिसके कारण यह सब हुआ। शिव जी ने
उनको सलाह दी की आपस में सुलह करके छमा याचना कर लो। सूर्य देव भगवान ने अपनी गलती का अहसास किया तब सूर्यदेव जी के रथ के घोड़ो को आगे बढ़ने की गति मिल पाई। कहा जाता है की तभी से पिता और पुत्र में वैमनष्य चला आ रहा है अर्थात शनिदेव भगवन पिता के विद्रोही ,शिव के भग्त एवं माता के प्रिय बताये बन गए।
लोगो की ऐसी मान्यता है की सूर्यमाला में जो शनि है व्ही शनिदेव का प्रतीक है।
या यु कहे की यह एक वैदिक संकल्पना है। वैसे मनुष्य के जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक शनिदेव जी का प्रभुत्व माना गया है। ज्योतिष फलादेश के अनुसार बताया गया है की जन्म के समय जिसका शनि प्रबल है , उसमे आयरन की कमी नही पाई जाती , जहा आयरन की कमी नही होगी वहा ऊर्जा का स्त्रोत काफी मात्रा में पाया जाता है।
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