Thursday, October 29, 2015

समाज का मेला

                           समाज का मेला
समाज का मेला
मन को बेचैन न होने दे ,
सफर है ज़िंदगी का ,
किस्मत में जो लिखा है ,
मिल जायेगा,
कुछ करने का जज्बा बना ,
हवाओ के तीर ना छोड़,
कुछ करेगा तो ,
फूल गुलशन का ,
स्वयं खिल जायेगा ,:::::::
 समझो अपना सभी को ,
यह कोई गैर नही ,,
कुछ दिन का मेला है ,
न साथ आया कोई ,
जाना भी अकेला है ,
यही तो समाज सेवा का ,
मेला है।  ::::::::
कुछ  कर ले ,
खुद को कमजोर न होने दे।
हवा का एक झोका ,काफी है ,
सभी द्धेष , धन , वैभव ,
एक धोखा है ,
यही समाज सेवा का। ,
मेला है। ::::::::::
                        ( B.S.Sharma )
                             Delhi... 

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