BHIRGUVANSHI 28th May.2014.
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" नारी शोसण "
बेटी ; बहु और माँ ;नारी के रूप बताये गए है।तीनो ही रूपों में नारी शादियों से प्रताड़ित की जाती रही है क्यों ;: इसका कारण और समाधान दुनियाँ के सबसे बड़ा लोकतन्तर कहां जाने वाला भारत देश भी नहीं ढूंढ पा रहा है...इसके कारण तो अनेक कहे जा सकते है परन्तु पुरुष की मानसिकता , संकीर्ण सोच तथा शदियों से चली आ रही सामाजिक परथाए ,परम्पराएँ जिनका प्रत्येक समाज ,तथा परिवार अपने तरह से अलग अलग व्याख्या करते हे।'सभी कारणों को एक सूत्र में पिरोकर रखा जाये ,/देखा जाये[मंथन ) किया जाये तो यही निष्कर्ष निकलता है की पुरुष की संकीर्ण सोच ही नारी को प्रताड़ित करने पर विवश करती है ;क्योकि व्यक्ति विशेष अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के लिए नारी को हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है 'और कोमल ह्रदय नारी जुल्मों को सहन करती रहती है। इस पुरूष प्रधान देश में नारी का जितना आदर होता है ;उससे कही ज्यादा अनादर भी सहन करना पड़ता है ;यही हमारी परम्परा रही है। हमारे देश में नारी को पुरुष /पुरुष संगठन व्यर्थ में दोषारोपण करते हुए सजा दे देते है जो ग़लती उसने की ही नहीं हो। नारी प्रताड़ना के मामलो में पुरुष संगठन अधिकतर सामाजिक ताना -बानो का सहारा लेकर नारी पर ही दोष मढ़ देते है जो एक स्वस्थ परम्परा नहीं कही जा सकती। मनुष्य की संकीर्ण सोच का राज नारी की सफलता ,सामाजिक प्रथाएँ व सामाजिक बन्धनों में छिपा है जिनका "निराकरण नारी को (Independent) होने के सुअवसर प्रदान किये जाएं तो नारी का शोषण किसी हद तक कम हो सकता है यही समय की पुकार है।
B.S.SHARMA. DELHI
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" नारी शोसण "
बेटी ; बहु और माँ ;नारी के रूप बताये गए है।तीनो ही रूपों में नारी शादियों से प्रताड़ित की जाती रही है क्यों ;: इसका कारण और समाधान दुनियाँ के सबसे बड़ा लोकतन्तर कहां जाने वाला भारत देश भी नहीं ढूंढ पा रहा है...इसके कारण तो अनेक कहे जा सकते है परन्तु पुरुष की मानसिकता , संकीर्ण सोच तथा शदियों से चली आ रही सामाजिक परथाए ,परम्पराएँ जिनका प्रत्येक समाज ,तथा परिवार अपने तरह से अलग अलग व्याख्या करते हे।'सभी कारणों को एक सूत्र में पिरोकर रखा जाये ,/देखा जाये[मंथन ) किया जाये तो यही निष्कर्ष निकलता है की पुरुष की संकीर्ण सोच ही नारी को प्रताड़ित करने पर विवश करती है ;क्योकि व्यक्ति विशेष अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के लिए नारी को हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है 'और कोमल ह्रदय नारी जुल्मों को सहन करती रहती है। इस पुरूष प्रधान देश में नारी का जितना आदर होता है ;उससे कही ज्यादा अनादर भी सहन करना पड़ता है ;यही हमारी परम्परा रही है। हमारे देश में नारी को पुरुष /पुरुष संगठन व्यर्थ में दोषारोपण करते हुए सजा दे देते है जो ग़लती उसने की ही नहीं हो। नारी प्रताड़ना के मामलो में पुरुष संगठन अधिकतर सामाजिक ताना -बानो का सहारा लेकर नारी पर ही दोष मढ़ देते है जो एक स्वस्थ परम्परा नहीं कही जा सकती। मनुष्य की संकीर्ण सोच का राज नारी की सफलता ,सामाजिक प्रथाएँ व सामाजिक बन्धनों में छिपा है जिनका "निराकरण नारी को (Independent) होने के सुअवसर प्रदान किये जाएं तो नारी का शोषण किसी हद तक कम हो सकता है यही समय की पुकार है।
B.S.SHARMA. DELHI
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