" आत्मग्लानि के शिकार भृगुवंशी ,डकोत -ब्राह्मण "
बंधुवर ::::::: इसे वक़्त की विडंबना कहा जाये या भाग्य विडंबना ,जहां अपने
ही देश में, अपने ही समाज के भाइयो द्वारा ही, बिना किसी कारण के पुरे समाज के लोगो को तिरस्कार
मिले , आत्मग्लानि का शिकार होना पड़े , वो भी इसलिए की उस समाज के लोग दूसरे समाज के लोगो के
दुःख -दर्द में शामिल होकर "यजमान " को दान -दक्षिणा के एवज में सुख देने का कार्य करे और दान
दाता को शांति प्रदान करे , वो समाज कोई और नही , वो है आपका अपना " डकोत -ब्राह्मण " समाज।
जिन्हे ,शनि ,शनिस्चर्या ,देशांतरी ,इत्यादि नामों से जाना जाता है।
लेखको , शोधकर्ताओं ,ग्रंथो , के अनुसार इन्हे भरगुवंसज अर्थात , मह्रिषी भरगु
( भरगु संहिता के रचयिता ) एवं भरगु जी के पुत्र ( मह्रिषी शुक्राचार्य ) के वंसज के रूप में देखा जाता है..
फिर क्यों , उन्ही लेखको ,शोधकर्ताओं ने कई पुस्तको में इन्हे ( Degrade Brahmno ) ki संज्ञा देकर
तिरस्कार से सुशोभित किया गया है। इस प्रकार की बातो को किवदंतियों का रूप दिया जाये या फिर
वक़्त की विडंबना , जबकि इस किस्म का पौराणिक प्रमाण किसी भी लेखक या शोधकर्ता को अभी तक
नही मिल पा रहा है। ब्राह्मण का काम दान लेना है , ब्राह्मण तो ब्राह्मण ही है फिर यह (de-grade)
brahmn शब्द क्यों और कैसे बना। इसलिए की वो ( यजमान ) के कर्मो को ( शनि दान ) के रूप में
महाराज शनि जी की क्रूर दृस्टि से बचाते हुए उनके बुरे कर्मो का लेखा -जोखा अपनी झोली में डाल लेते
है। क्यों है ? आखिर ऐसा।
यदि ऐसा है तो भारतवर्ष में असंख्य +शनि मंदिर + बने हुए है ,जिन में
लाखो -करोड़ो का चढ़ावा आता है ,कभी सोचा है किसी ने की वो चढ़ावा किस के पास जाता है , उन मंदिरो
में क्या " डकोत ब्राह्मण " ही पुजारी है , नही ऐसा नही है , उन मंदिरो में उच्च कोटि के अच्छी पहुंच
वाले ब्राह्मण है , उस लाखो करोड़ो का चढ़ावा कौन डकार रहा है ( ग्रहण ) कर रहा है ( उन्हें degrade)
brahmn की संज्ञा क्यों नही दी जाती , उन सभी मंदिरो में वे ही लोग शनि दान ग्रहण कर रहे है , जो उच्च
कोटि के ब्राह्मण है , फिर समाज में ऐसा भेदभाव क्यों ; ( डकोत -ब्राह्मण ) का तगमा पहना कर उन्हें
(scapegoat) बना दिया गया है , केवल (scapegoat ) किसी ने कहा है की धन के मालिक हम , और
तिरस्कार के तुम ; ./ …
वर्तमान में कुछ युवा वर्ग ( डकोत -ब्राह्मणो ) के बच्चे दान -दक्छिना ) से
परहेज करते देखे गए है , उन्हें नही पता की डकोत जाति क्या होती है ,क्यों की दूसरे समाज के लोग ,
उनके बच्चे आपस में घुल -मिल गए है , युवा वर्ग अपनी मेहनत ,पर विश्वास करते है , कई ( NGO) के
सर्वे रिपोर्ट से भी आभाष मिलता है की शनि दान लेने वाले दूसरी जाति के लोग अधिक पाये गए है।
वक़्त के बदलते परिवेश में डकोत ब्राह्मण समाज के लोगो , बच्चों द्वारा अपना कारोबार , या नौकरी ,पेशे
पर ज्यादा धयान दिया जा रहा है ,कई प्रांतो में देखा गया है की डकोत ब्राह्मण समाज के बच्चे ,लोग
अपनी छमता से ( A class officer , Engineer , Director ) इत्यादि पोस्ट पर काम कर रहे है ,सेवा
निवृत भी हो चुके है , जिनकी लिस्ट एवं फोटो अगली पोस्ट में दी जाएगी। केवल इतना जरूर है की
इनकी जनसंख्या कम होने के कारण इनका कोई ( Candidate ) पिछले काफी अरसे से अपनी एंट्री संसद ,
विधानसभा में नही करा पाया है।
वक़्त के बदलते परिवेश में समय की पुकार है की डकोत ब्राह्मण समाज के योग्य
बच्चे अपना जीवन-साथी भी स्वयं ही चुनने लगे है दूसरे समाज के लोग ,बच्चे भी आपस में मिलजुल कर
रहते है, दूसरे समाज के लोग बच्चो से प्रभावित होकर आपस में सम्बन्ध ( विवाह संबंध ) आदि भी
करने लगे है , धीरे धीरे समय की रफ़्तार नया रंग दिखाने लगी है ,प्यार बढ़ाने लगी है। ऐसा ही सब चलता
रहा तो ( शनि दान देने वाला ) दानदाता को पहचान करनी मुस्किल हो जाएगी की दान ग्रहण
करने वाला कौन है, यही वक़्त का तकाजा भी है. :::::::
नोट :- इस लेख से मेरी भावना किसी को चोट पहुचना या हानि करना नही है , यदि कोई मेरे
विचारो से सहमत नही है तो मैं माफ़ी चाहता हु। :::: नमस्कार :::::
( B.S.Sharma )
Sanyojak & Founder member ,
Akhil Bhartiya , Bhirguvanshi ,Brahman,
Maha sabha , Delhi...
बंधुवर ::::::: इसे वक़्त की विडंबना कहा जाये या भाग्य विडंबना ,जहां अपने
ही देश में, अपने ही समाज के भाइयो द्वारा ही, बिना किसी कारण के पुरे समाज के लोगो को तिरस्कार
मिले , आत्मग्लानि का शिकार होना पड़े , वो भी इसलिए की उस समाज के लोग दूसरे समाज के लोगो के
दुःख -दर्द में शामिल होकर "यजमान " को दान -दक्षिणा के एवज में सुख देने का कार्य करे और दान
दाता को शांति प्रदान करे , वो समाज कोई और नही , वो है आपका अपना " डकोत -ब्राह्मण " समाज।
जिन्हे ,शनि ,शनिस्चर्या ,देशांतरी ,इत्यादि नामों से जाना जाता है।
लेखको , शोधकर्ताओं ,ग्रंथो , के अनुसार इन्हे भरगुवंसज अर्थात , मह्रिषी भरगु
( भरगु संहिता के रचयिता ) एवं भरगु जी के पुत्र ( मह्रिषी शुक्राचार्य ) के वंसज के रूप में देखा जाता है..
फिर क्यों , उन्ही लेखको ,शोधकर्ताओं ने कई पुस्तको में इन्हे ( Degrade Brahmno ) ki संज्ञा देकर
तिरस्कार से सुशोभित किया गया है। इस प्रकार की बातो को किवदंतियों का रूप दिया जाये या फिर
वक़्त की विडंबना , जबकि इस किस्म का पौराणिक प्रमाण किसी भी लेखक या शोधकर्ता को अभी तक
नही मिल पा रहा है। ब्राह्मण का काम दान लेना है , ब्राह्मण तो ब्राह्मण ही है फिर यह (de-grade)
brahmn शब्द क्यों और कैसे बना। इसलिए की वो ( यजमान ) के कर्मो को ( शनि दान ) के रूप में
महाराज शनि जी की क्रूर दृस्टि से बचाते हुए उनके बुरे कर्मो का लेखा -जोखा अपनी झोली में डाल लेते
है। क्यों है ? आखिर ऐसा।
यदि ऐसा है तो भारतवर्ष में असंख्य +शनि मंदिर + बने हुए है ,जिन में
लाखो -करोड़ो का चढ़ावा आता है ,कभी सोचा है किसी ने की वो चढ़ावा किस के पास जाता है , उन मंदिरो
में क्या " डकोत ब्राह्मण " ही पुजारी है , नही ऐसा नही है , उन मंदिरो में उच्च कोटि के अच्छी पहुंच
वाले ब्राह्मण है , उस लाखो करोड़ो का चढ़ावा कौन डकार रहा है ( ग्रहण ) कर रहा है ( उन्हें degrade)
brahmn की संज्ञा क्यों नही दी जाती , उन सभी मंदिरो में वे ही लोग शनि दान ग्रहण कर रहे है , जो उच्च
कोटि के ब्राह्मण है , फिर समाज में ऐसा भेदभाव क्यों ; ( डकोत -ब्राह्मण ) का तगमा पहना कर उन्हें
(scapegoat) बना दिया गया है , केवल (scapegoat ) किसी ने कहा है की धन के मालिक हम , और
तिरस्कार के तुम ; ./ …
वर्तमान में कुछ युवा वर्ग ( डकोत -ब्राह्मणो ) के बच्चे दान -दक्छिना ) से
परहेज करते देखे गए है , उन्हें नही पता की डकोत जाति क्या होती है ,क्यों की दूसरे समाज के लोग ,
उनके बच्चे आपस में घुल -मिल गए है , युवा वर्ग अपनी मेहनत ,पर विश्वास करते है , कई ( NGO) के
सर्वे रिपोर्ट से भी आभाष मिलता है की शनि दान लेने वाले दूसरी जाति के लोग अधिक पाये गए है।
वक़्त के बदलते परिवेश में डकोत ब्राह्मण समाज के लोगो , बच्चों द्वारा अपना कारोबार , या नौकरी ,पेशे
पर ज्यादा धयान दिया जा रहा है ,कई प्रांतो में देखा गया है की डकोत ब्राह्मण समाज के बच्चे ,लोग
अपनी छमता से ( A class officer , Engineer , Director ) इत्यादि पोस्ट पर काम कर रहे है ,सेवा
निवृत भी हो चुके है , जिनकी लिस्ट एवं फोटो अगली पोस्ट में दी जाएगी। केवल इतना जरूर है की
इनकी जनसंख्या कम होने के कारण इनका कोई ( Candidate ) पिछले काफी अरसे से अपनी एंट्री संसद ,
विधानसभा में नही करा पाया है।
वक़्त के बदलते परिवेश में समय की पुकार है की डकोत ब्राह्मण समाज के योग्य
बच्चे अपना जीवन-साथी भी स्वयं ही चुनने लगे है दूसरे समाज के लोग ,बच्चे भी आपस में मिलजुल कर
रहते है, दूसरे समाज के लोग बच्चो से प्रभावित होकर आपस में सम्बन्ध ( विवाह संबंध ) आदि भी
करने लगे है , धीरे धीरे समय की रफ़्तार नया रंग दिखाने लगी है ,प्यार बढ़ाने लगी है। ऐसा ही सब चलता
रहा तो ( शनि दान देने वाला ) दानदाता को पहचान करनी मुस्किल हो जाएगी की दान ग्रहण
करने वाला कौन है, यही वक़्त का तकाजा भी है. :::::::
नोट :- इस लेख से मेरी भावना किसी को चोट पहुचना या हानि करना नही है , यदि कोई मेरे
विचारो से सहमत नही है तो मैं माफ़ी चाहता हु। :::: नमस्कार :::::
( B.S.Sharma )
Sanyojak & Founder member ,
Akhil Bhartiya , Bhirguvanshi ,Brahman,
Maha sabha , Delhi...
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