Monday, July 6, 2015

( महर्षि भर्गु के पूत ( च्यवन की सन्तान भार्गव }

                              ( महर्षि भर्गु  के पूत ( च्यवन  की सन्तान  भार्गव }
                             भार्गव भारतवर्ष में रहने वाले लोगो की एक (Community) है , जो भार्गव नाम 
                से जानी जाती है।  इनका निकास  हरयाणा , राजश्थान , सीमा पर बनी डोसी हिल का बताया 
                 जाता  है।   वास्तव इन्हे ढूसर नाम से जाना जाता है।  
                (हिस्ट्री ) ::::::: कालान्तर में इन्हे ढूसर कहा जाता था,इनकी ( ट्रेडिंग ) जाती  ( बनिया ,एवं 
                वैस्य ) बताया जाता है।  ( 19th Century) में इनका उदय संस्कृत जानने वाले ब्राह्मणो के 
                रूप में हुआ  : तभी से इनहे भार्गव कहा जा रहा है।  इसके कुछ अंकित प्रमाण शक्रारी माता 
                मंदिर ( जिला  शिकर ) सीकर   में उपलब्ध बताये गए है. जिस पर 642 AD avm 879 AD)
                अंकित है।  उस समय उनका व्यवसाय ( ट्रेडिंग)  बताया गया है। 
                              ( भार्गव  लोग ) अपने आपको महर्षि भरगु जी के पुत्र  (च्वयन ऋषि ) की संतान 
                 कहते है। ढोसी हिल पर बनाया गया च्वयन ऋषि के नाम से मंदिर  भार्गवों द्वारा  १८९० में 
                 दोबारा बनाया गया है।  कहा  जाता  है की भार्गव सभा जयपुर की स्थापना १८८१ में की
                 गई थी।  तथा  भार्गव पत्रिका का प्रकाशन सन १९०० में अजमेर से शुरू किया गया था। 
                 यह भी मालूम हुआ है की भार्गव सभा का १००व अधिवबेशन  १९८९ में ,२४,२५,२६ दिसम्बर 
                 को  जयपुर में किया गया था।  कुछ भृगुवंशी ज्योत्षी ब्राह्मण ( डकोत  ब्राह्मण ) भी अपने 
                 नाम के साथ भार्गव शब्द का प्रयोग करते है ,क्योकि वे अपने आपको  महर्षि भरगु के पुत्र 
                 कवि ( शुक्राचार्य ) के वंसज कहते है , तथा शुक्राचार्य  जी को भी भार्गव नाम से जाना जाता 
                 है , वास्तव में भार्गव  शुक्राचार्य जी को ही  कहा  जाता है।  हर ( writer ) ka  अपनी कल्पना , 
                अपना  मत होता है।  
                               

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