" डकोत -बनाम शनि दान "
पिछले सप्ताह (वट्स -अप ) पर " डकोत जाति के मुद्दे पटल पर बहस करते हुए देखने
को मिले,काफी चर्चा का विषय बना रहा , फिर भी कोई निष्कर्ष नही निकला। इस चर्चा को आपके लोगो के समक्ष इस प्रकार रखे जाने की अनुमति चाहते हुए अपने कुछ विचार व्यक्त कर रहा हु…
प्राय : देखा गया है की दिल्ली में शनिवार के दिन ( शनि दान ) लेने वालो की चौराहो पर
भीड़ सी लगी रहती है ( शनि आइडल ) एक बर्तन में दिया जलाकर ,धुप लगाकर ,लोगो को शनि भगवान के रूप में प्रेसित किया जाता है, दानदाता भी श्र्दा अनुसार दान देते है , चौराहो पर भीड़ भी लग जाती है , कई बार
तो आवागमन भी बाधित हो जाता है। ठीक उसी प्रकार गलियो में भी शनि दान लेने वाले देखे जा सकते है।
शायद इसी प्रकार का वातावरण दूसरे प्रांतो के शहरों एवं गावो में भी होता होगा।
२. प्राय : दिल्ली के मेन (प्रमुख ) बाजारों में जहां भीड़ भाड़ अधिक होती है , गलियो में कुछ लोग
एक ( बर्तन ) में शनि आइडल रखकर , धुप ,दीप जलाकर छोड़ देते है , उसमे कुछ सरसों का तेल देखा गया
है , दानदाता उसमे श्रद्धानुसार दान दिक्षणा डाल देते है , शाम होने तक उसमे काफी मात्रा में तेल एवं पैसा
इकठा हो जाता है , शाम को आकर वहां उस बर्तन और दान को उठा लिया जाता है। लेकिन यह कहना
मुस्किल है की यह दान किसी डाकोत जाति के परिवार को जाता है या कोई दूसरे वर्ग के लोग इस काम को
कर रहे है , ( डाकोत जाति ) के लिए यह एक विचारणीय मुद्दा है। शायद इस प्रकार दूसरे प्रांतो में भी किया
जा रहा हो /
३. शनि दान ( राहु केतु दान ) शनि गृह के प्रकोप से बचने के लिए दिया जाता है , यह धारणा प्राचीन काल से
चली आ रही है, यह भी कहा जाता है की इस प्रकार का दान (डाकोत ब्राह्मण) को ही देना उचित बताया गया है
सवाल यह उठता है की इसके पीछे ( प्राचीन धारणाये क्या है , क्यों है ,( क्या और क्यों ) यह दानं डाकोत के
अतिरिक्त कोई और लेने का अधिकारी क्यों नही ,क्योकि आजकल तो दान लेने वालो की कतारे लगी रहती
है , किसी के चेहरे पर थोड़ा ही लिखा है की यह ब्राह्मण है , या की डाकोत ब्राह्मण है , न ही इस प्रकार की सरकार की ओर से कोई ( आइडेंटिटी कार्ड ) बनाये हुए है।
४. प्राय : वर्तमान परिवेश में यह देखा जा रहा है की " डाकोत जाति " ( डाकोत समाज ) के अधिकतर लोग
इस व्यवशाय से जुड़े हुए नही है , वे लोग शनि दान ग्रहण नही करते , न ही उनके बच्चो का इसमें इंट्रेस्ट
है, परन्तु तिरस्कृत उन लोगो को होना पड़ता है अर्थात ( वे लोग scapegoat) बन कर ज़िंदगी जी रहे है
इसे कहते है ( करे कोई और भरे कोई ) सत्य में यह मुहावरा यहाँ लागु होता है। अधिकतर डाकोत जाति
के लोग अपना व्यव्शाय ,नौकरी कर रहे है। परन्तु पूरा वर्ग तिरस्कृत होता देखा गया है।
५. भारतवर्ष में असंख्य शनि मंदिर बने हुए है , उन मंदिरो me शनि पुजारी (डाकोत ब्राह्मण ) नही होते , उनमे
दूसरे ब्राह्मण वर्ग अथवा दूसरी जाति के लोग दान ग्रहण करते है ,( फिर क्यों डाकोत समाज ) तिरस्कृत
होता है , :::::::: इस प्रथा को मध्य नजर रखते हुए मैं आप सभी बुद्धिजीवी वर्ग ,युवा वर्ग , इत्यादि , सभी के
रूबरू होते हुए उनके विचार जानना चाहता हु , निम्न मुद्दो पर किर्पया अपने विचार रखे ::
( १) शनि दान देने की प्रथा कब और कैसे पड़ी। …
( २) यह दान लेने का कौन अधिकारी है और क्यों ?
(३) दूसरे ब्राह्मण या दूसरी जाति (वर्ग ) के लोग जो इस काम से जुड़े हुए है , क्या वे लोग इस दान को
ग्रहण नही कर सकते , यदि करते है तो उसका परिणाम क्या होगा ?
::::::::::::::::: इसके अतिरिक्त ::::::::::
१. भारत वर्ष में भिक्षावृति कानून लागु है , फिर भी लोग कर रहे है। यदि सरकार , प्रांतीय सरकार से इस
विषय पर पत्र व्यवहार किया जाये की डाकोत जाति इस व्यव्शाय से अपने आपको अलग करती है , या
डाकोत जाति के लोग यह कार्य नही कर रहे ,तो इस पर आप लोगो की क्या राय है ( किर्पया अपने विचार )
रखे , ::::: इस बात को मध्य नजर जरूर रखा जाये की जो इस कार्य से जुड़े हुए है , उनका भरण पोषण किस
रूप से ( किस तरह ) होगा , उनकी सहमति का भी धयान रखा जाना चाहिए।
(५) यदि सरकार से ( डाकोत जाती ) का नाम बदलने की पर्तिकिर्या की जाये (जारी रखी ) जाये हर प्रान्त में
तो क्या समस्या का समाधान हो जायेगा ,क्योकि ( शनि दान ) लेने वाले अर्थात भिक्षावृति तो खत्म नही
होगी , तो जाती का नाम बदलने से क्या प्रभाव होगा , कृपया , उलेख करे।
शनि दान लेने वाले हर सहर हर प्रान्त में सक्रिय है , तरह तरह के नमो से जाने जाते है
जैसे ,जोशी , ज्योत्षी , डाकोत ,शनिस्चर्या , देशांतरि ,शनिदेव , शनि इत्यादि , इत्यादि ,( डाकोत एवं जोशी )
दोनों एक ही नाम से जाने जाते है , इसमें कोई अंतर है तो कृपया बताये , क्या जोशी लोग शनि का दान नही
लेते।
सभी बातो को मध्य नजर रखते हुए आप अपने सुझाव ( इसके फायदे एवं नुकशान ) दोनों का
उलेख करते हुए लिखे , बताये , बहस करे। बुद्धिजीवी वर्ग भी इस चर्चा में शामिल होकर अपने विचार रखे
तो बेहतर होगा , समाज के प्रमुख व्यक्ति , सामाजिक संस्थाए ( भिरगुवंशिया सभी प्रांतो की संस्थाए ) यदि
उचित लगे तो इस पर अपने विचारो से अवगत कराये क्यों की , यह एक या दो व्यक्तियों का प्रश्न नही है ,पुरे समाज से जुड़ा हुआ विषय है। अत : करवद्ध प्राथना है की इसके लिए सभी प्रांतो के लोग एक जुट होकर
आगे आये अपने विचार रखे , समाधान एवं नुकशान का अवलोकन करे तभी पूरा समाज तिरस्कृत होने से
बच सकता है , यदि मै यह कहू की हम तो जोशी है , डाकोत नही तो ऐसी बाते समाज हित की नही।
नोट : मेरी भावना किसी के प्रति कटाक्ष या दुर्भावना से प्रेरित नही है , इसे ( otherwise ) में न लेते हुए
समाज को बेहतर सम्मान दिलाने के लिए आगे आये , आना होगा। गलती की माफ़ी चाहता हु। ....
( B.S.Sharma )
Delhi . 9810710034.